डीएनए हिंदी: क्या हाल के दिनों में लगातार वैश्विक मंदी की खबरें सुनकर आपके मन में कुछ सवाल उठे हैं? क्या उनमे यह भी सवाल है कि कहीं भविष्य में आपकी नौकरी पर भी इसका असर तो नहीं पड़ेगा? बेरोजगारी, महंगाई और लगातार बढ़ रहे कॉम्पिटिशन के बीच छंटनी की खबरों पर चिंता लाज़मी है. सिर्फ नौकरीपेशा लोग ही नहीं, बल्कि जो युवा नौकरी की तलाश में हैं, वे भी मंदी के बारे में सुनकर परेशान हैं. उनकी परेशानी है कि कहीं आने वाले दिनों में नौकरी मिलना और ज्यादा मुश्किल ना हो जाए. आखिर ये आर्थिक मंदी है क्या? कैसे आती है? और इससे कैसे बचा जा सकता है? आइए आसान शब्दों में समझते हैं.
क्या होती है आर्थिक मंदी?
जब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी (GDP) ग्रोथ घटती है, तो उसे मंदी कहते हैं. जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट. किसी एक साल के दौरान देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है.
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मंदी की संभावना पर अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल का सर्वे क्या कहता है?
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल के एक सर्वे में कहा गया है कि अगले 12 महीनों के दौरान अमेरिका में आर्थिक मंदी आ जाएगी. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, जुलाई में हुए सर्वे में मंदी आने की संभावना 29% थी, जो अब बढ़कर 63% तक पहुंच गई है. जुलाई 2020 के बाद पहली बार मंदी आने की संभावना 50% से ज्यादा जताई गई है. अर्थशास्त्र के जानकार कहते हैं कि अमेरिका की जीडीपी 2023 की पहली तिमाही में 0.2% वार्षिक दर से और दूसरी तिमाही में 0.1% की दर से गिरेगी और इस गिरावट के कारण जब कंपनियों का मुनाफा कम होगा तो सीधे-सीधे इसका असर लोगों की नौकरियों पर पड़ेगा. ऐसे में कई कंपनियां नौकरियों में कटौती कर सकती हैं. बेरोजगारी दर, जो सितंबर में 3.5% थी, दिसंबर में बढ़कर 3.7% और जून 2023 में 4.3% हो जाएगी और अगले साल के अंत तक ये और बढ़ सकती है.
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माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, उबर और नेटफ्लिक्स में छंटनी
अमेरिका की न्यूज वेबसाइट Axios के मुताबिक, आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने 1,000 लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. जुलाई के बाद तीसरी बार कंपनी ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से निकाला है. माइक्रोसॉफ्ट के पास करीब 1.80 लाख कर्मचारी हैं. जुलाई के बाद से कंपनी 1% लोगों को नौकरी से निकाल चुकी है. क्रंचबेस द्वारा तैयार डाटा के मुताबिक, अमेरिका में बड़ी टेक कंपनियों ने 32,000 लोगों को नौकरी से निकाला है. इनमें मेटा और माइक्रोसॉफ्ट शामिल हैं. उबर और Netflix के साथ कई क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज और लैंडिंग प्लेटफॉर्म ने भी लोगों की छंटनी की है.
अमेरिकी मंदी का भारत पर कैसे होगा असर?
मशहूर अर्थशास्त्री अरुण कुमार के मुताबिक, आसान शब्दों में कहें तो अमेरिका और विश्व के अन्य देशों में मंदी का मतलब है वहां की अर्थव्यवस्था का कमजोर होना यानी देश की आर्थिक गतिविधियों में कमी आना. इसका परिणाम ये होगा कि अमेरिका भारत या अन्य देशों से किए जाने वाले आयात में कमी लाएगा. भारत से निर्यात कम होने का सीधा मतलब है कि कंपनियों का मुनाफा कम होगा. अगर कंपनियों का मुनाफा कम होगा तो इसका सीधा असर लोगों की नौकरियों पर दिखेगा, क्योंकि मुनाफा कम होने पर कंपनियां नौकरियों में कटौती कर सकती हैं. नए लोगों को रोजगार मिलने में परेशानी आएगी. नौकरी कर रहे लोगों को सैलरी में इजाफा होने की उम्मीद कम होगी. मतलब लोगों की नौकरियों पर भी संकट पैदा हो सकता है. वहीं अर्थशास्त्री एसपी शर्मा का कहना है कि मंदी का असर भारत के ग्रोथ रेट पर जरूर पड़ेगा. निर्यात में कमी के कारण कुछ नौकरियों में कटौती जरूर हो सकती है, लेकिन फिर भी भारत एक बेहतर स्थिति में रहेगा.
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मंदी से बचने के उपाय क्या हैं?
1. ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं, डिमांड और सप्लाई बढ़ाने से होगा फायदा- अर्थशास्त्री अरुण कुमार के मुताबिक, मंदी से बचने के लिए सरकार को Fiscal Policy पर जोर देना चाहिए. आसान भाषा में समझते हैं कि यह क्या है? दरअसल विश्व में सेंट्रल बैंक और फेडरल बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं. RBI को भी ब्याज दरें बढ़ानी पड़ रहीं हैं, लेकिन ब्याज दरें बढ़ाना समाधान नहीं है बल्कि डिमांड और सप्लाई को बढ़ाना पड़ेगा.
अब सवाल ये है कि डिमांड और सप्लाई बढ़ेगी कैसे? वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड बढ़ाने के लिए जरूरी है कि लोगों के पास पैसा हो ताकि वो खर्च कर सकें. अब इसके भी दो तरीके हैं. सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे पर खर्च करे. बुनियादी ढांचे में खर्च यानी बिजली, पुल, बांध, सड़कें आदि पर सरकार अगर जोर दे तो इससे रोजगार पैदा होगा. लोगों को रोजगार मिलेगा तो उनके पास पैसे आएंगे और वो पैसे खर्च करेंगे तो अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. दूसरा तरीका है गरीब के हाथ में सीधा पैसा देना. इसके लिए सरकार गरीबों के लिए रोजगार गारंटी स्कीम में और बढ़ोतरी करे. स्कीम के तहत दिए जाने वाली तनख्वाह में और इजाफा करे. इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की स्थिति कुछ बेहतर होगी और वो इस पैसे को जब खर्च करेंगे तो अर्थव्यवस्था में मजबूती लाने में मदद मिलेगी.
2. महंगाई पर काबू रखना जरूरी- मंदी से बचने के लिए मंहगाई को काबू में रखने को अर्थशास्त्री अरुण कुमार बहुत जरुरी बताते हैं. सरकार को महंगाई को कम करने के लिए उपाय करने चाहिए. ब्याज दरें बढ़ाना ही एकमात्र उपाय नहीं है.
3. MSME पर जोर- अर्थशास्त्री एसपी शर्मा मानते हैं कि MSME को और अधिक मजबूत बनाने से रोजगार के अवसर पैदा होंगे. MSME का मतलब होता है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसाय. यह सेक्टर न सिर्फ रोज़गार के अवसर पैदा करता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में भी अहम भूमिका निभाता है.
4. DBT जैसी स्कीम को बढ़ावा देना और मजबूत करना- डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर का मतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली मदद का सीधे खाते में पहुंचाना. इससे बिचौलिए की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि पैसे सीधे लाभार्थी के अकाउंट में पहुंचते हैं. उदाहरण के तौर पर इस स्कीम के तहत किसानों को एमएसपी पर बेची गई फसल का लाभ सरकार द्वारा सीधे बैंक खाते में दिया जा रहा है. जिससे किसानों को बिचौलियों के चक्कर में नहीं फंसना पड़ रहा और सीधे पैसे मिल रहे है। किसानों को फायदा मिलेगा तो वो खेती पर ज्यादा खर्च करेंगे जिसका सीधा मतलब है ज्यादा उपज, यानी सप्लाई की बढ़ोतरी और महंगाई पर काबू. DBT यानी डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर स्कीम को मजबूत करने, इसी तरह की और स्कीम लाने से अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है और मंदी से बचा जा सकता है.
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अमेरिका में मंदी, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, नेटफ्लिक्स में छंटनी, क्या आपकी नौकरी भी खतरे में?