डीएनए हिंदीः देश की नारी शक्ति राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान देने से तनिक भी पीछे नहीं हट रही है. समाज के जटिल क्षेत्रों तक में महिलाओं ने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करा रही है. इसके विपरीत कई ऐसे इलाके हैं जहां मूलभूत सुविधाएं एवं आवश्यक सर्विसेज की कमी है. ऐसी ही एक आवश्यकता बैंकिंग की भी है. देश के दूर-दराज इलाकों में अभी बैंकिंग संबंधी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. झारखंड के कुछ इलाकों की इस स्थिति को समझते हुए यहां के गांवों की लगभग साढ़े चार हजार महिलाएं बैंक सखी बन गई हैं. ये महिलाए प्रतिदिन 120 करोड़ रुपए से ज्यादा का ट्रांजेक्शन कर रही हैं.
वंचित लोगों की मदद
दरअसल, झारखंड के इन दूर-दराज के गांवों में लोगों के पास बैंकिंग संबंधी जानकारी बेहद कम है. इसके चलते ये कई बार अनभिज्ञता के कारण अपने अधिकार तक प्राप्त नहीं कर पाते हैं. वहीं इस इलाके में महिलाओं ने एक सखी मंडल बनाया है जो कि करीब 4,500 महिलाओं द्वारा संचालित होता है. ये महिलाएं खेत में काम करने वाले किसानों से लेकर बच्चों की छात्रवृत्ति तक को इनके घरों तक पहुंचाने का काम करती है. इसके चलते इन्हें बैंकिंग कॉरसपॉन्डेट तक कहा जाता है. इसकी वजह ये है कि न तो लोगों को अपना काम छोड़कर बैंक का काम करने जाना पड़ता है और न ही उन्हें बैंक से मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ता है.
4,619 महिलाएं कर रहीं काम
बैंकिंग सखी के नाम से जो ये स्वतंत्र सखी मंडल चल रहा है. इसका गठन केंद्र की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन परियोजना के तहत किया गया है. झारखंड में यह परियोजना झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के अंतंर्गत चलाई जा रही है. इस सकारात्मक सोच पर सोसाइटी की सीईओ आईएएस नैन्सी सहाय ने बताया, "पूरे झारखंड में 4619 महिलाएं बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट (बी.सी.सखी) के रूप में काम कर रही हैं. सरकार का लक्ष्य है कि राज्य की प्रत्येक पंचायत में एक बी.सी. सखी की तैनाती हो. अभी हर महीने बी.सी. सखी लगभग पौने तीन लाख ट्रांजेक्शन करती हैं."
कोरोनाकाल में सहायक
कोरोनाकाल के दौरान इन महिलाओं ने चलता-फिरता बैंक बनकर लोगों की मुसीबतों को सहजता से हल किया है. इसके चलते बैंक तक पहुंचने वाली भीड़ का संभावित काम सीधे लोगों के घरों में ही पूरा हो गया था. इसके चलते ये महिलाएं अपने साथ लैपटॉप लेकर निकल पड़ती थीं. वहीं इस काम के कारण इन महिलाओं को भी एक बड़े रोजगार का अवसर मिला है.
इन्हें प्रत्येक ट्रांजेक्शन पर एक निश्चित कमीशन मिलता है. ये महिलाएं प्रति माह करीब 120 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन करती है. इस पूरी योजना से एक पंथ दो काज हो रहे हैं. एक तरफ महिलाओं को रोजगार मिलने के साथ ही महिला सशक्तिकरण हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर दूर-दराज के इलाकों में बैंकिंग की सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.
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