डीएनए हिंदी: पिछले तीन तिमाहियों से महंगाई दर 6 फीसदी से सीमा से ऊपर चल रही है. महंगाई काबू न कर पाने के कारण RBI ने हाल ही में केन्द्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इसी बीच SBI Research ने चिंता जताई है कि अक्तूबर माह में हुई बेमौसमी बरसात के कारण महंगाई में कमी आने की संभावना नहीं है. मंहगाई को काबू में लाने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं. लेकिन MPC के कुछ सदस्यों का मानना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी का इकोनामी में असर देखने में समय लगता है. इस कारण से अब हमें ब्याज दरों के प्रभावों का आंकने के लिए थोड़ा रुकना चाहिए. ऐसे में देखना है कि RBI अगली MPC बैठक में क्या फैसला लेता है?
देश में अक्तूबर में हुई 50 फीसदी ज्यादा बारिश
इस साल मौसम में हर सीजन में बदलाव देखे गए. पहले गर्मी बहुत पहले आ गई फिर मानसून के तय सीजन के बाद जमकर बारिश हुई. इस साल भारत में अक्तूबर माह में 50 फीसदी ज्यादा बारिश हुई. वहीं उत्तर प्रदेश में इसी महीने 400 फीसदी बेमौसमी बारिश से जूझना पड़ा है. इसके अलावा हरियाणा में 299 फीसदी, मध्य प्रदेश में 199 फीसदी और राजस्थान में 193 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है.
अक्तूबर की बारिश और महंगाई का कनेक्शन
SBI रिसर्च के अनुसार आने वाले महीनों में महंगाई कम होने के आसार नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि साल 2019 में अक्तूबर महीने में जब 44 % ज्यादा बारिश हुई तो अगले तीन महीनों की खाद्य महंगाई दर (Food CPI) 10.9 % हो गई. इससे पहले के तिमाही में 4.9 % रही थी. इससे आशंका लगाई जा रही है कि खाद्य महंगाई दर आने वाले अगली तिमाही में भी बढ़ी हुई ही रहे.
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साल 2021 और 2020 में भी अक्तूबर में 33 फीसदी और साल 2020 में 3 फीसदी अतिरिक्त बारिश हुई थी. इन सालों में इसके बाद नवम्बर से जनवरी के बीच खाद्य महंगाई की दर उतनी नहीं बढ़ी थी. वरिष्ठ अर्थशास्त्री वृंदा जागीरदार का कहना है कि , “ये सही है कि अक्तूबर की बेमौसमी बारिश से खरीफ की फसल प्रभावित हुई है. लेकिन साथ साथ इस बारिश से जमीन में नमी बेहतर हुई है. इसका फायदा आगे आने वाली रबी की फसल को मिलेगा”.
क्या बढ़ेंगी ब्याज दरें?
अमेरिकी फेडरल बैंक ने 2 नवंबर को ब्याज दरें 0.75 फीसदी बढ़ाने की घोषणा कर दी. अब अमेरिका में ब्याज दर 4 फीसदी हो चुकी है. अमेरिका में मंहगाई 40 सालों के उच्चतम स्तर पर है. अमेरिका ब्याज दरों के बढ़ने से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ता है. भारतीय शेयर बाजारों से निवेशक पैसा खींचना शुरु कर देते हैं. निवेश पर मुनाफे के हिसाब से भारतीय बाजार कम आकर्षक हो जाते हैं. इसके अलावा भारत को अपने आयात के लिए भी ज्यादा मूल्य चुकाना पड़ता है.
Consumer Price Inflation (CPI) में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 45.86 % है. ऐसे में खाद्य महंगाई दर में अगर बढ़ोतरी होती है तो CPI (Consumer Price Inflation) की दर भी नीचे नहीं आएगी. इन दोनो कारणों से रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव बढ़ जाएगा.
MPC सदस्य ब्याज दरों को बढ़ाने पर एकमत नहीं
मौद्रिक नीति कमेटी (MPC) के सदस्य जयंत वर्मा ने पिछली मीटिंग में कहा था कि बढ़ी हुई ब्याज दरों को इकोनामी तक पहुंचने में 3-4 तिमाहियों का समय लग सकता है. अभी भी पिछली ब्याज दरों की बढ़ोतरी का इकोनामी पर असर अभी तक नहीं पहुंचा है. एक और MPC सदस्य आशिमा गोयल का मानना है कि मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का असर इकोनामी में आने पर समय लगता है. इस मामले Overaction का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. पिछली मीटिंग में आशिमा ने 0.35 फीसदी ब्याद दरों में बढ़ोतरी के लिए वोट किया था. जाने मानी अर्थशास्त्री वृंदा जागीरदार की राय है कि , “महंगाई को काबू में लाना हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य है. लेकिन इसके साथ साथ हमे ध्यान रखना है कि इससे हमारी विकासदर प्रभावित न हो. ब्याज दरों के असर को देखने के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना चाहिए करना चाहिए.”
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