भारत की टेलीकॉम इंडस्ट्री में कभी एक बड़ा नाम रही कंपनी एयरसेल के संस्थापक चिन्नाकन्नन शिवशंकरन ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में अपने जीवन और कारोबारी सफर के उतार-चढ़ाव पर चर्चा की. तमिलनाडु में पले-बढ़े शिवशंकरन ने बताया कि कैसे उनकी कुछ अहम फैसलों की चूक ने उनके सफल होते कारोबार को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया. शिवशंकरन का मानना है कि हिंदी न सीख पाने की वजह से वे देश के बड़े हिस्से से नहीं जुड़ पाए. उन्होंने कहा, 'अगर मैंने हिंदी सीखा होता तो मैं 140 करोड़ भारतीयों से जुड़ सकता था. इससे मेरा कारोबार और नेटवर्क दोनों बड़ा हो सकता था.' उनके अनुसार भाषा की यह दूरी एक बड़ा व्यापारिक नुकसान साबित हुई.
मुंबई या दिल्ली न जाना भी पड़ी भारी
शिवशंकरन ने यह भी बताया कि उन्हें अपने करियर की शुरुआत में ही चेन्नई छोड़कर दिल्ली या मुंबई चले जाना चाहिए था. उनका मानना है कि अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो उन्हें बड़े बिजनेस नेटवर्क और संसाधनों का फायदा मिलता और शायद आज वे 1 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक होते.
एयरसेल की ऊंचाई से गिरावट तक का सफर
1999 में एयरसेल की स्थापना के बाद कंपनी ने तेजी से टेलीकॉम सेक्टर में नाम कमाया. बेहतर मार्केटिंग और संपर्कों की बदौलत एयरसेल ने लाखों ग्राहकों को जोड़ा. लेकिन साल 2006 में एक बड़ा फैसला शिवशंकरन के लिए भारी साबित हुआ. उन्होंने एयरसेल की 74% हिस्सेदारी मलेशिया की कंपनी मैक्सिस कम्युनिकेशंस को बेच दी. बाद में यह डील विवादों में आ गई और उन्होंने आरोप लगाया कि उन पर दबाव डालकर यह डील कराई गई. इस डील के बाद एयरसेल के लिए कारोबार करना कठिन होता गया. वित्तीय संकट बढ़ते चले गए और आखिरकार फरवरी 2018 में एयरसेल ने टेलीकॉम मार्केट से बाहर होने का फैसला ले लिया.
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अगर हिंदी सीखी होती तो आज अरबों में होता कारोबार, टेलीकॉम कंपनी के मालिक ने सुनाई कारोबार डूबने की वजह