डीएनए हिन्दी: कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान से अभी दुनिया उबर ही रही थी कि ग्लोबल मंदी आहट देने लगी है. दुनिया के कुछ छोटे देश 'आर्थिक अराजकता' के दौर में भी पहुंच चुके हैं. वहीं, विकसित और विकासशील देशों के दरवाजे पर मंदी की आहट सुनाई देने लगी है. मंदी को लेकर दो बड़ी आर्थिक शक्तियां चीन और अमेरिका को भी एक्सपर्ट सचेत कर चुके हैं.
बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों की क्रयशक्ति में हो रही गिरावट इस मंदी के खतरे को और बढ़ा रही है. अभी हाल ही में जानी-मानी रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन सैक्स के सीनियर चेयरमैन एलॉयड ब्लैकफिन ने भी मंदी के खतरे को लेकर अमेरिका को अगाह किया. पिछले दिनों उन्होंने साफ लहजे में कहा कि अमेरिका पर मंदी का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. यही नहीं, गोल्डमैन सैक्स ने 2023 के जीडीपी के लक्ष्य को 2.2% से घटाकर 1.6% कर दिया है. वहीं इस फाइनैंशल ईयर में इसके 2.4% रहने का अनुमान है.
ब्लैकफिन ने अमेरिकी सेंट्रल बैंक को वर्तमान परिस्थितियों में कोई भी कदम सोच-समझकर उठाने की सलाह दी.
हालांकि, ब्लैकफिन की सलाह से पहले ही दुनियाभर के देशों की आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती देखने को मिल रही है. डिमांड की भारी कमी का असर दिग्गज सहित सभी तरह की कंपनियों के रिजल्ट पर भी दिखने लगा है. ध्यान रहे कि इससे पहले 2008 में दुनिया ने मंदी का एक भयावह रूप को देखा था. उस दौर में कई लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा था, जिसका सीधा असर उनके जीवन स्तर पर पड़ा था.
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दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति चीन भी अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है. इन दिनों चीन में कोरोना का प्रकोप चरम पर है. उसके दो प्रमुख शहर लॉकडाउन की चपेट में हैं. चीन की आर्थिक राजधानी शंघाई में पूरी तरह से लॉकडाउन है. सभी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स में ताला लगा हुआ है. इसका खामियाजा भी दुनिया को भुगतना पड़ रहा है. ध्यान रहे कि चीन दुनिया का एक बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब है. इसकी वजह से दुनिया में कई जरूरी चीजों की सप्लाई पर असर पड़ रहा है.
बुधवार को ही एक अन्य ग्लोबल रेटिंग एजेंसी S&P ने फाइनैंशल ईयर 2023 के लिए भारत के जीडीपी का अनुमान 7.8 से घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया है. रेटिंग एजेंसी ने इसके पीछे मुख्य कारण महंगाई को बताया है. एजेंसी ने भारत में बढ़ती महंगाई को लेकर चिंता भी जाहिर की है. S&P ने महंगाई से बचने के लिए भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई को तेजी से ब्याज दरों में बढ़ोतरी की सलाह भी दी है.
अन्य कई रेटिंग एजेंसियों ने भी हाल ही में भारत के जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाया है. वर्ल्ड बैंक ने फाइनैंशल ईयर 2022-2023 के लिए जीडीपी का अनुमान 8.7 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी कर दिया है. आईएमएफ ने 9 से घटाकर 8.2 फीसदी कर दिया है. एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भी अपना अनुमान घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया है.
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यही नहीं, महंगाई और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.8 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. हालांकि, कई एक्सपर्ट द्वारा दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर रहने की संभावना जताई गई है.
रूस-यूक्रेन युद्ध भी इस संकट को और गहरा रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध को आज 85 दिन से ज्यादा हो गए हैं. युद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. कुछ एक्सपर्ट द्वारा ऐसी आशंका जताई जा रही है कि अगर आने वाले कुछ दिनों में समाधान न निकला तो इसका दायरा बढ़ सकता है. इस युद्ध में कई और देश शामिल हो सकते हैं.
ध्यान रहे कि रूस दुनिया में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट का एक बड़ा निर्यातक है. युद्ध के कारण रूस पर कई प्रतिबंध लगे हैं, जिसकी वजह से पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स यानी पेट्रोल, डीजल, नैचुरल गैस की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की कीमतों में तेज बढ़ोतरी की वजह से पूरी दुनिया में महंगाई देखने को मिल रही है. यही नहीं यूक्रेन और रूस, दोनों देश आनाज के भी बड़े निर्यातक हैं. खासकर गेहूं के. युद्ध की वजह से इस पर भी असर पड़ा है. दुनियाभर में खाने-पीने की चीजों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. कई गरीब देशों में भुखमरी का खतरा भी उत्पन्न हो गया है.
वहीं, शेयर बाजार में हो रही भारी गिरावट भी मंदी के संकेत दे रहे हैं. पिछले 6 महीनों में दुनियाभर के शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है. अमेरिका के प्रमुख इंडेक्स नैस्डैक में टॉप लेवल से करीब 30 फीसदी तक की गिरावट हुई है. वहीं प्रमुख सूचकांक डाऊ जोन्स में 15 पर्सेंट से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली है. भारतीय शेयर बाजार में भी यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है. दोनों प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी अपने टॉप लेवल से करीब 15 फीसदी तक टूट चुके हैं.
मंदी के प्रमुख कारण
अगर किसी देश की अर्थव्यवस्था या जीडीपी में गिरावट देखने को मिले तो यह मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है. मंदी का एक और महत्वपूर्ण लक्षण है. इसमें लोगों के खर्च करने की क्षमता में भारी कमी देखने को मिलती है. आमतौर पर जब संकट दिखता है तो लोग अपने जरूरी खर्च भी कम करने लगते हैं. जैसे-जैसे लोगों की खर्च करने की क्षमता में कमी आती है वैसे ही मंदी भी और गहराती जाती है.
मंदी की चपेट में आने के बाद कल-करखानों के उत्पादन में भी गिरावट आने लगती है. यानी डिमांड की कमी की वजह से फैक्ट्रियों में ताले लगने शुरू हो जाते हैं. इसका खमियाजा बचत और निवेश में कमी के रूप में भी दिखता है. डिमांड में कमी, उत्पादन में कमी का सीधा संबंध लोगों के रोजगार से भी है. ऐसी स्थितियों में कंपनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं. ध्यान रहे कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बढ़ती बेरोजगारी अभिशाप से कम नहीं है.
संक्षेप में मंदी के कुछ और प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:-
6 महीने तक मैन्यूफैक्चरिंग में भारी गिरावट
75% से अधिक उद्योगों में 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए रोजगार में गिरावट
बेरोजगारी दर का 6 फीसदी से ज्यादा होना
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दुनिया पर मंडरा रहा है मंदी का खतरा, भारत भी चपेट में आएगा?