Tasty Poori Aloo ki Sabzi: जब भी भारतीय और पाश्चात्य भोजन की तुलना होती है तब एक बिंदु पर आकर बात अटकती है. वह मुख्य बिंदु है रोटी. भारतीय भोजन की सबसे ख़ास बात है रोटी. ताजा आटा गूंथकर उसकी रोटी, पूड़ी या परांठे बनाए जाते हैं जो हर व्यंजन का मजा बढ़ा देते हैं. रोजमर्रा के खाने से जो बात अलग करती है वह है पूड़ी. कई घरों में त्योहारों पर तवा न चढ़ाने या कहें प्रयोग की मनाही होती है. इसका साफ़ मतलब है कि आज घी या तेल डूबी पूड़ियां खाने को ही मिलेंगी.
आप सभी के बचपन की मीठी यादों में पूड़ी हलवा या खीर पूड़ी खाने की एक याद तो जरूर होगी. बचपन में हम इंतजार करते थे कि किस दिन पूड़ी बनेगी और हमें खाने को मिलेगी. तब शायद त्योहार पर पूड़ी ही होती थी. मेरे बचपन में मैंने देखा था कि आज रात की बनी पूड़ियां अगले दिन किसी भी रूप में खाई जाती थीं जिसका जायका भी कुछ कम स्वादिष्ट नहीं होता था. अक्सर रात की पूड़ियों को गरम करके नमक लगाकर चाय के साथ उदरस्थ किया जाता था. तो आइए बात करते हैं गरम-नरम पूड़ियों की.
नमक और अजवाइन वाली पूड़ियां होती हैं बेहद लजीज
पूड़ियां गेहूं के आटे, मैदे और बेसन के अलावा आटा-सूजी मिक्स, आटा-मैदा को मिक्स करके भी बनाई जाती हैं. इनमें मसाले, सब्जी वगैरह भी मिलाए जाते हैं. आम तौर पर पूड़ियां आटे की बनाई जाती हैं. गेहूं के आटे को थोड़ा कड़ा या टाइट गुंथा जाता है. कुछ लोग इसमें नमक मिलाते हैं तो कुछ घरों में पूड़ी आटे में अजवाइन भी डालते हैं. बिहार में नमक, मंगरैल और आजवाइन मिलाकर आटे की इस पूरी को कचौरी बोलते हैं. अजवाइन की पूड़ी आलू की सब्जी के साथ दैवीय स्वाद पैदा करती है. बिना नमक की पूड़ी गरमा गरम हलवे या खीर के साथ ज्यादा अच्छी लगती हैं. अजवाइन या नमकीन पूड़ी रसेदार या सूखी सब्जियों की ज्यादा अच्छी दोस्त होती हैं. दोनों साथ मिलकर खाने वाले की जीभ पर स्वाद का ऐसा धमाका करते हैं कि खाते-खाते पेट तो भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता.
ब्रज की बेड़ईं आह और वाह के साथ खाते हैं लोग
दूसरी तरफ उत्तर भारत के ही ब्रज मंडल यानी आगरा के आसपास के इलाकों में सूजी की मसाले वाली पूड़ी बनाई जाती है जिसे बेड़मी या बेड़ईं भी कहते हैं. इसमें दाल और मसाले भी डाले जाते हैं. इसे भी झोलदार आलू की सब्जी और कद्दू की सब्जी के साथ परोसा जाता है. यह पूड़ी उत्तर भारत में ही मिलती है. पूर्वांचल (बिहार और उत्तर प्रदेश का इलाका) की शादियों में हाथी के कान की तरह बड़ी-बड़ी पूड़ियां खिलाने का रिवाज है. इसे पूड़ा कहा जाता है. बिहार और उत्तर प्रदेश में जलेबी के साथ पूड़ी भी लोग चाव से खाते हैं.
बंगाल में मैदे वाली लूची का अपना ही है जलवा
बंगाल में पूड़ी का रूप बदला हुआ मिलता है. वहां गेहूं के आटे की जगह मैदा का प्रयोग किया जाता है जिससे उसका स्वाद और रूप रंग बिलकुल बदल जाता है. मैदे से बनी इस पूड़ी को लूची कहते हैं. लूची आटे की पूड़ी की तुलना में पतली होती है. बंगाल में लूची चाहे मांसाहारी डिश कोशा मांगशो हो या आलू दम दोनों के साथ खूब चाव के साथ खाई जाती है.
बेसन वाली पूड़ियों के जायकों का क्या कहना
राजस्थान के कुछ इलाकों में बेसन की पूड़ी भी बनती है लेकिन ऐसी पूड़ियां स्वाद बदलने का काम करती हैं. बहुत जगह पूड़ियों में नमक, अजवाइन के साथ सब्जियों को भी डाला जाता है. पालक, चुकंदर को उबाल कर उन्हें आटे में गूंथ लिया जाता है और फिर उस आटे की पूड़ियां बनाई जाती हैं. इस तरह पूड़ी का स्वाद और रंग दोनों बदल जाते हैं. इन अलग प्रयोगों के जरिए हम पूड़ी की न्यूट्रिशनल वैल्यू भी बढ़ा सकते हैं. पूड़ी में अगर दाल की पिट्ठी आदि भरी जाए तो वह कचौरी बन जाती है इसलिए कचौरियों की कहानी किसी और दिन. आज तो पूड़ी का दिन है.
दक्षिण भारत में भी आलू के कोरमे के साथ पूड़ी खाई जाती है. वही उड़ीसा में डालमा को पूड़ी संग खाया जाता है. पूड़ी का एक दोस्त है भटूरा जिसे पंजाब की शान कहा जाता है लेकिन आज पूरे भारत में लोकप्रिय है. भटूरा खमीर उठे मैदे से बनाया जाता है जिसे छोले या काबुली चने के साथ खाया जाता है. इस तरह पूड़ी अलग-अलग रूपों में खाई और सराही जाती है. दरअसल पूड़ी खाने में मस्ती का प्रतीक है. यही वजह है कि गाने तक में इसका जिक्र इसी मस्तीखोर अंदाज में पेश हुआ है-‘हलवा, पूड़ी खाएंगे, हल्ला मचाएंगे...’. वैसे वीकंड आ चुका आप कुछ अलग या उत्सवी माहौल में आना चाहते हैं तो कड़ाही चढ़ाएं और पूड़ियों को तलने की पूरी तैयार कर लें.
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Poori and Halwa: कुछ अच्छा खाकर मौज में आना चाहते हैं तो तल लें गरमा गरम पूड़ियां