डीएनए हिंदी: पूर्वांचल की राजनीति की बात हो और मुख्तार अंसारी की चर्चा न हो ऐसा हो नहीं सकता है. मऊ जिला अंसारी परिवार का गढ़ है. इस जिले से एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी हुए, नेता हुए लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे हर चेहरे को लोग भूलने लगे. हमेशा चर्चा में रहा तो एक नाम मुख्तार अंसारी.
मुख्तार अंसारी बाहुबली नेता हैं. गैंस्टर, हत्या, रंगदारी के 40 से ज्यादा मुकदमे मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज हैं. 14 साल से ज्यादा वक्त से जेल में मुख्तार अंसारी बंद हैं. आपराधिक छवि इतनी बड़ी है कि बड़ी राजनीतिक पार्टियां टिकट देनें से भी कतरा रही हैं.
मुख्तार अंसारी 1996 में इस विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए. मऊ की सदर सीट से मुख्तार अंसारी ने लगातार 5 बार विधानसभा चुनाव जीता है. कहा जाता है कि यह मुख्तार का अजेय दुर्ग है जिसे गिराने की कोशिश में सियासी पार्टियों के पसीने छूट जाते हैं. मुख्तार अंसारी को इस बार किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है.
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बाहुबली के बेटे पर सियासी दांव!
मऊ विधानसभा सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी चुनाव लड़ रहे हैं. समाजवादी पार्टी (SP) के नेतृत्व वाले गठबंधन को उम्मीद है कि पारिवारिक सीट बचाने में अब्बास अंसारी कामयाब हो जाएंगे. आइए समझते हैं सीट का सियासी समीकरण.
2022 में किसके बीच है चुनावी टक्कर?
सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर अब्बास अंसारी चुनाव लड़ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी इस विधानसभा सीट पर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है. यहां से अशोक कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. सपा गठबंधन और बीजेपी की सीधी जंग इस विधानसभा सीट पर देखने को मिल सकती है. बसपा का भी इस विधानसभा सीट पर मजबूत पकड़ है.
बहुजन समाज पार्टी से भीम को टिकट दिया गया है. सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के टिकट पर शैलेंद्र यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. जनता क्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) से रामकिशोर चुनावी समर में हैं. कांग्रेस पार्टी ने माधवेंद्र बहादुर सिंह को प्रत्याशी बनाया है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने फखरे आलम को टिकट दिया है. पीस पार्टी ने मुनव्वर को टिकट दिया है.
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कैसा है सीट का इतिहास
पार्टियां बदलती रहीं चेहरा एक रहा. 1996 से लेकर 2017 तक मुख्तार अंसारी इस विधानसभा सीट से कभी नहीं हारे हैं. 1996 में पहील बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. दूसरी बार 2002 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. तीसरी बार फिर 2007 में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की. 2012 में मुख्तार ने कौमी एकता दल के टिकट पर चुनाव जीता. 2017 में फिर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. अब मुख्तार की बसपा से अनबन है. उनके चुनाव पर भी ग्रहण लग चुका है.
1957 में पहली बार इस विधानसभा सीट पर बेनी बाई ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था. निर्दलीय उम्मीदवा बाल कृष्णा के खिलाफ उन्होने जीत दर्ज की थी. 1962 में भी बेनी बाई ने जीत दर्ज की. इस विधानसभा सीट पर कभी कांग्रेस, कभी सीपीआई और कभी बसपा को जीत मिलती रही है लेकिन बीजेपी खाता खोलने में असफल रही है.
कैसा था 2017 का विधानसभा चुनाव?
2017 के विधानसभा चुनाव में लगातार पांचवी बार मुख्तार अंसारी ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. कुल 96793 मत उन्हें हासिल हुए थे. सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर महेंद्र राजभर को टिकट मिला था. उन्हें कुल 88095 वोट हासिल हुए थे. समाजवादी पार्टी के अल्ताफ अंसारी तीसरे नंबर पर थे. उन्हें कुल 72016 वोट मिले थे. नोटा को कुल 1725 लोगों ने वोट दिया था.
पार्टी | प्रत्याशी | वोट | जीत का अंतर |
बसपा | मुख्तार अंसारी | 96793 | |
सुभासपा | महेंद्र राजभर | 88095 | |
सपा | अल्ताफ अंसारी | 72016 |
कब है वोटिंग?
मऊ में सातवें और अंतिम चरण में वोटिंग होनी है. वोटिंग की तारीख 7 मार्च है. चुनाव के नतीजे 10 मार्च को घोषि कर दिए जाएंगे.
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UP Election 2022: मुख्तार अंसारी का गढ़ है मऊ विधानसभा सीट, क्या बेटे की सियासी पकड़ कमजोर कर पाएगी BJP?