डीएनए हिंदी: देश के इतिहास में 21 जनवरी का दिन बेहद खास है. देश के संघीय इतिहास में मणिपुर (Manipur), मेघालय (Meghalaya) और त्रिपुरा (Tripura) के तौर पर 3 राज्यों का उदय हुआ था. पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को अलग राज्य बने पांच दशक हो गए हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम 1971 के तहत मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 21 जनवरी 1972 को अलग राज्य का दर्जा दिया गया था. मणिपुर अब अपने 13वें विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है.
मणिपुर में कांग्रेस (Congress) का हमेशा से दबदबा रहा है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के हिस्से सबसे ज्यादा सीटें आईं थीं. 60 विधानसभा वाले मणिपुर में कांग्रेस ने 28 सीटें हासिल की थीं और 21 सीटें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खाते में गई थीं. नेशनल पीपल्स पार्टी और नगा पीपल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी और 2 अन्य विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन कर सरकार बना लिया था. सूबे के मुख्यमंत्री पद के तौर पर शपथ एन बीरेन सिंह ने ली. कांग्रेस जीत के बाद भी सरकार नहीं बना सकी.
Congress करेगी वापसी की कोशिश
मणिपुर में कांग्रेस वापसी की कोशिश में जुटी है. ज्यादा सीटों के बाद भी सरकार न बना पाने का मलाल कांग्रेस को अब तक है. कांग्रेस के आदर्श पुरुष और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मणिपुर को ज्वेल ऑफ इंडिया कहते थे. कांग्रेस के लिए मणिपुर बेहद खास रहा है.
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मणिपुर में कांग्रेस शासन के दौर को इस तरह से याद किया जा सकता है कि ओकराम इबोबी के नेतृत्व में साल 2017 तक लगातार 15 सालों से कांग्रेस की सरकार कायम रही थी. 15 साल की एंटी इनकंबेंसी भी कांग्रेस का जलवा खत्म नहीं कर पाई थी. यही वजह थी पार्टी ने सबसे ज्यादा 28 सीटें हासिल की थीं.
किस समुदाय का है दबदबा?
मणिपुर की सियासत में मतई समुदाय का दबदबा रहा है. मणिपुर में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं. 20 सीटें पहाड़ी इलाके में पड़ती हैं और 40 सीटें घाटी इलाकों में. मेतई समुदाय यहां निर्णायक भूमिका में रहता है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जिन सूबे में उसी की सरकार बनती है जिसके साथ मेतई समुदाय होता है. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में इसी समुदाय को साधने की कोशिश की थी. यही वजह थी कि पार्टी की सीटों में जबरदस्त इजाफा हुआ था.
2012 में कांग्रेस के पास थीं 42 सीटें, अब सामने है दमदार बीजेपी
दरअसल साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास 42 सीटें थीं. तब बीजेपी के पास एक भी सीटें नहीं थीं. अब बीजेपी की सरकार है और लगातार कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. बीजेपी के नेता लगातार दावा करते रहते हैं कि जितनी शांति बीजेपी के 5 साल के कार्यकाल में रही है पूर्वोत्तर में देश में इतनी शांति कभी नहीं देखी है. बीजेपी इसी को मुद्दा बनाकर एक बार फिर कांग्रेस को घेर रही है.
कांग्रेस-बीजेपी के अलावा कितने दल हैं चुनावी मैदान में?
राज्य में बीजेपी अब एक ताकतवर फैक्टर बन चुकी है. सत्ता में है. कांग्रेस और बीजेपी की सीधी जंग होनी तय है लेकिन एक बार फिर स्थानीय दल बड़ी भूमिका सरकार बनाने में निभा सकते हैं. राजनीतिक तौर पर अस्तित्व में तृणमूल कांग्रेस, नागा पीपल्ल फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी, नेशनल पीपल्स पार्टी हैं. लेफ्ट की पार्टियां भी सक्रिय हैं लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में 1 भी सीटें हासिल नहीं हुई हैं. 2017 में कांग्रेस 28, बीजेपी 21, टीएमसी 1, एनपीएफ 4, एलजेपी 1, एनपीपी 4 और एक निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी.
कब हैं मणिपुर में चुनाव?
मणिपुर में 2 चरणों में विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. 60 विधानसभा सीटों के लिए पहले चरण की वोटिंग 27 फरवरी को होगी वहीं दूसरे चरण की वोटिंग 3 मार्च को होगी. नतीजे 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे.
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Manipur Polls: मणिपुर में क्या है सियासी समीकरण, किस पार्टी का रहा है दबदबा?