डीएनए हिंदीः पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के परिणाम इस बार देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले होंगे. बीजेपी जिस तरह देशभर में अपनी जड़ें जमा रही है, वह क्षेत्रीय दलों को खटकने लगा है. छोटे दल बीजेपी के विस्तार को अपने अस्तित्व पर खतरा मान रहे हैं. ऐसा इसलिए कि जिन राज्यों में अब तक बीजेपी (BJP) दूसरे दलों से गठबंधन कर सरकार बना रही थी, आज या तो वहां बीजेपी खुद अपने बलबूते सत्ता में है या मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी है. बीजेपी के इसी विस्तार से क्षेत्रीय दल एकजुट होने लगे हैं. चुनाव के नतीजों से पहले भले ही यह दल वेट एंड वॉच की मुद्रा में है लेकिन रणनीति पर काम अभी से शुरू हो गया है.
विपक्षी नेताओं ने बनाई फिलहाल दूरी
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में अधिकांश विपक्षी दलों ने दूसरे राज्य की क्षेत्रीय पार्टियों से दूरी बना रही है. यूपीए (UPA) में शामिल दल भी कांग्रेस (Congress) के समर्थन में अपने राज्य को छोड़ अन्य कहीं प्रचार के लिए नहीं जा रहे हैं. यह दल चुनाव नतीजे से पहले मुखालफत कर किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती है. इस बीच सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही एक ऐसी नेता हैं, जिन्होंने भाजपा के विरोध में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए मोर्चा संभाला हुआ है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार, लालू यादव की आरजेडी से लेकर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने इस चुनाव से दूरी बना रखी है.
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नतीजे तय करेंगे क्षेत्रीय दलों की रणनीति
फिलहाल सभी क्षेत्रीय दल चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं. अगर चुनाव में बीजेपी की हार होती है तो उसके खिलाफ क्षेत्रीय दलों का आक्रमण तेज हो सकता है. गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल की बढ़ती दखलंदाजी से परेशान गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन की चर्चा तेज होने लगी है. अभी तक क्षेत्रीय दलों की अगुवाई ममता बनर्जी करती नजर आई हैं लेकिन इस बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके सुप्रीमो एमके स्टालिन ने पहल की है. उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है. उन्होंने लिखा कि बजट के दूसरे सत्र से पहले गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक दिल्ली में आयोजित होगी. बता दें कि 11 मार्च से बजट के दूसरे सत्र की शुरुआत होनी है और 10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आएंगे.
यूपीए में शामिल दल ही चुनाव में आमने-सामने
चुनाव परिणाम से पहले विपक्षी विपक्षी एकजुटता की बात इसलिए भी बेमानी है कि कभी यूपीए का हिस्सा रहे दल भी चुनाव में आमने-सामने हैं. सपा और बसपा एक समय यूपीए का हिस्सा थी लेकिन यूपी चुनाव में दोनों पार्टियां आमने-सामने हैं. ऐसे में इन दोनों दलों की बीच गठबंधन के आसार कम ही नजर आते हैं. इसी कारण यह दल फिलहाल शांत बैठे हैं. चुनाव परिणाम के बाद ही रणनीति तैयार की जाएगी.
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कांग्रेस के सामने खड़ी हो सकती है परेशानी
विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर विपक्षी दल 2024 की रणनीति तैयार करेंगे. विपक्षी दलों की मुख्य रणनीति बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए समान विचारधारा के लोगों को एक मंच पर लाने की है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी तक कांग्रेस ही केंद्र में मुख्य विपक्षी दल के रूप में अगुवाई करती नजर आई है. अगर चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो उसका रुतबा कम हो सकता है. दूसरी तरफ ममता बनर्जी पहले से ही कांग्रेस को अलग-थलग कर विपक्ष को एकजुट करने में जुटी हैं.
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