डीएनए हिंदी: हिमाचल में किस दल की सरकार बनेगी, किसकी नहीं यह अंदाजा लगाना तो अभी मुश्किल है. लेकिन हिमाचल की सियासत में एक जिला ऐसा है जिसके बगैर सत्ता तक पहुंचना किसी भी दल के लिए मुश्किल होता है. यह जिला कांगड़ा है. कांगड़ा में विधानसभा (Kangra assembly) की 15 सीटें हैं. इस जिले में जिस भी दल ने बढ़त पाई है, सत्ता की कुर्सी की चाबी उसी के हाथ लगी है. 15 विधानसभा क्षेत्रों वाला यह जिला आबादी के हिसाब से प्रदेश में सबसे बड़ा है. यहीं से सत्ता पर काबिज होने का रास्ता बनता हैं. इसलिए बीजेपी-कांग्रेस इस जिले को कब्जाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. यही वजह है कि इस जिले से मंत्रिमंडल में सबसे अधिक सदस्य होते हैं.
कांगड़ा में मतदाता प्रतिशत में सामान्य वर्ग में राजपूत जाति 34 प्रतिशत, ओबीसी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 32%, ब्राह्मण 18% , अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग एससी-एसटी 20% हैं. इस बार आम आदमी पार्टी भी हिमाचल प्रदेश में अपना भाग्य आजमा रही है. जिला कांगड़ा में भी आप सेंध की तैयारी कर रही है. इसी तरहं से हमीरपुर भी काफी महत्वपूर्ण है. यहां से प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल ने कई बार जीत दर्ज की है और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने. हमीरपुर प्रदेश का एजुकेशनल हब माना जाता है. हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले की 5 विधानसभा सीटों में इस बार कई उम्मीदवारों के मैदान छोड़ने के बाद से साफ हो गया है कि बीजेपी 5 में से 3 विधानसभा सीटों पर विद्रोह का सामना कर रही है. यहां से 9 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जिनमें मुख्य मुकाबला बीजेपी के नरेंद्र ठाकुर, कांग्रेस के डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा और निर्दलीय उम्मीदवार आशीष शर्मा के बीच बताया जा रहा है.
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बड़सर विधानसभा सीट पर बड़ा टकराव
जबकि जिले की बड़सर विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार माया शर्मा को पार्टी के ही बागी नेता संजीव शर्मा के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. संजीव शर्मा भाजपा के दिवंगत नेता राकेश बबली के बड़े भाई हैं. कांग्रेस की ओर से इंद्र दत्त लखनपाल मैदान में हैं. बीएसपी के रतनचंद कोटच, आम आदमी पार्टी के गुलशन सोनी, राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के नरेश कुमार और हिमाचल जनक्रांति पार्टी के परमजीत धातवालिया चुनाव लड़ रहे हैं. माया शर्मा भाजपा के जिला प्रमुख बलदेव शर्मा की धर्मपत्नी हैं. बदलेव शर्मा पूर्व विधायक भी रह चुके हैं.
भोरंज सीट
भोरंज सीट पर पांच प्रत्याशी मैदान में हैं. इनमें भाजपा के डॉ अनिल धीमान, कांग्रेस के सुरेश कुमार, बसपा के जरनैल सिंह और पवन कुमार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. डॉक्टर धीमान छह बार इस सीट से विधायक रह चुके स्वर्गीय आईडी धीमान के बेटे हैं. इस सीट पर भाजपा पवन कुमार के विरोध का सामना कर रही है जो जिला परिषद सदस्य है और यहां अच्छी पकड़ रखते हैं.
सुजानपुर में BJP-कांग्रेस की नाक की लड़ाई
सुजानपुर सीट पर पांच उम्मीदवार मैदान में हैं. यहां कांग्रेस के राजेंद्र राणा के सामने भाजपा के कैप्टन रणजीत सिंह, मैदान में हैं. बसपा ने ज्ञान चंद पर दांव लगाया है और आम आदमी पार्टी ने अनिल राणा पर भरोसा जताया है. इसी सीट पर राजेश कुमार निदर्लीय उम्मीदवार के रूप में अपने भाग्य आजमाने जा रहे हैं. इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक की लड़ाई है. राजेंद्र राणा यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं तो कैप्टन रणजीत सिंह के सिर पर पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल का हाथ है.
नादौन सीट
इसी तरह से नादौन सीट से छह उम्मीदवार मैदान में हैं जिनमें शामिल हैं. कांग्रेस के सुखविंदर सिंह सुख्खू के सामने हैं भाजपा के विजय अग्निहोत्री. बसपा ने देशराज, आम आदमी पार्टी ने शैंकी ठुकराल के अलावा दो निर्दलीय उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार गौतम और रणजीत सिंह भी मैदान में हैं.
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हमीरपुर जिले में लगभग सभी पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में उतरने के बाद जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं. जिले में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण सभी दल महिलाओं को अपनी-अपनी नीतियों से लुभाने का प्रयास कर रहे हैं. इस सीट पर 12 नवंबर को मतदान होगा और महिला मतदाता निर्णायक भूमिका होंगी. यहां महिला मतदाता जिस भी उम्मीदवार पर भरोसा जताएंगी जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा.
PM मोदी के चेहरे पर लड़ रही बीजेपी
यह चुनाव भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और राज्य के विकास के नाम पर लड़ रही है. कांग्रेस मुख्यता भाजपा की आलोचना को आधार बना रही है, वह भाजपा पर बेरोजगारी, मंहगाई,ओपीएस और कानून व्यवस्था की बेहतरी के लिए काम नहीं कर पाने का आरोप लगा रही है. कांग्रेस ने साफ किया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो एक बार फिर पुरानी पेंशन लागू करेगी. वहीं, आम आदमी पार्टी भी यही वादा लोगों से कर रही है. AAP जनता को स्वास्थ्य और शिक्षण सुविधाएं बेहतर ढंग की मुहैया कराने जैसे वादों पर भी जोर दे रही है. चुनाव प्रचार के लिए सभी दलों ने अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारा है. लोगों के वोट हासिल करने के लिए नेताओं के बीच मचे घमासान से दूर जिले की जनता ने अपनी मंशा को लेकर चुप्पी साधी हुई है. ऐसा में यह देखना रोचक होगा कि आम जनता किस पार्टी को सत्ता सिंहासन पर बैठाती है.
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आपको बतां दे कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों का प्रचार जारी है. राज्य में 10 नवंबर को प्रचार थम जाएगा और 12 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. इसके बाद 8 दिसंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर है. वहीं, आम आदमी पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए पूरा जोर लगा रही है.
2017 विधानसभा में किसका रहा पलड़ा भारी
2017 के चुनाव में कुल 12 में से बीजेपी ने 8 जिलों पर अपना कब्जा जमाया था, जबकि कांग्रेस को चार जिलों में जीत मिली थी. जिन जिलों में भाजपा को ज्यादा सीटें मिलीं उनमें कांगड़ा, मंडी, बिलासपुर, चम्बा, कुल्लू, सिरमौर, लाहौल स्पीती और ऊना शामिल थे. वहीं, हमीरपुर, किन्नौर, शिमला और सोलन जिले में कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी. हिमाचल प्रदेश में कुल 12 जिले हैं. इन जिलों में कांगड़ा में सबसे ज्यादा 15 विधानसभा सीटें, मंडी में 10 और शिमला में 8 सीटें हैं. इन तीनों बड़े जिलों में से कांगड़ा और मंडी में भाजपा को एक तरफा जीत मिली थी. वहीं, शिमला में कांग्रेस आगे रही थी. कांगड़ा की 15 में से 11 सीटें भाजपा तो तीन सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहा था.
2017 में किस क्षेत्र में किसे कितनी सीटें मिलीं
पिछली बार मंडी और कांगड़ा क्षेत्र में भाजपा ने बढ़त बनाई थी. वहीं, शिमला क्षेत्र में कांग्रेस आगे रही थी. मंडी क्षेत्र में पांच जिलों की कुल 24 सीट आती हैं. इन 24 में से 18 सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं. पांच सीटें कांग्रेस तो एक सीट पर अन्य को जीत मिली थी. कांगड़ा क्षेत्र में तीन जिलों की 25 सीटें आती हैं. इनमें से 18 भाजपा तो छह कांग्रेस के खाते में गईं थीं. एक सीट पर अन्य को जीत मिली थी. शिमला क्षेत्र में 4 जिलों की 19 सीटों में आठ पर भाजपा और 10 कांग्रेस के खाते में गईं थीं. एक सीट पर अन्य को जीत मिली थी.
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हिमाचल के इस जिले के पास है सत्ता की चाबी! जिस दल का रहा वर्चस्व उसकी बनी सरकार