डीएनए हिंदीः UP Elections 2022 को लेकर वर्तमान हालात कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल होने का ही इशारा कर रहे हैं. 1989 में यूपी की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पिछले लगभग तीन दशक से राज्य में अपने पैरों पर खड़ा होने की लगातार कोशिशें कर रही है लेकिन अबतक कोई खास सफलता पार्टी के 'हाथ' नहीं लगी है.
UP Elections 2022 को लेकर कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी की जिम्मेदारी जरूर दी है लेकिन पार्टी अभी भी चुनावों के गणित में भाजपा एवं सपा के बराबर खड़ी होती नहीं दिख रही है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस राज्य में चौथे व पांचवे नंबर की लड़ाई लड़ रही है. हर महीने जारी किए जाने वाले तमाम ओपिनियन पोल्स भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं.
कोशिश कर रही हैं प्रियंका
कांग्रेस ने जब से प्रियंका गांधी वाड्रा को मुख्य धारा की राजनीति में लॉन्च किया है, उसके बाद से ही प्रियंका उत्तर प्रदेश की राजनीति में पार्टी के लिए माहौल बनाने के लिए जुट गईं थीं. इसके बावजूद उन्हें बड़ा झटका तब लगा जब 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका अपने भाई राहुल गांधी की लोकसभा सीट अमेठी तक नहीं बचा सकीं.
प्रियंका लगातार प्रयास कर रही हैं कि राज्य में पार्टी को भाजपा की टक्कर में दिखाया जा सके. यही कारण है कि हाथरस रेप कांड से लेकर लखीमपुर में किसानों की हत्या के मुद्दे पर सबसे आगे रही थीं और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टारगेट कर रही थीं.
हिन्दुत्व की पिच पर बैटिंग कठिन
प्रियंका राज्य में मंदिरों का भ्रमण करके भाजपा के हिन्दुत्ववादी एजेंडे की काट करने की कोशिश कर रही हैं. प्रियंका को 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की वो आंतरिक एंटनी कमेटी की रिपोर्ट भी याद आती होगी, जिसमें कांग्रेस पर मुस्लिम पार्टी होने का ठप्पा लगा था. इसके चलते प्रियंका पार्टी की छवि को बदलने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन अबतक कोई खास करिश्मा दिखा पाने में असफल रही हैं.
साथ छोड़ रहे सहयोगी
कांग्रेस ने पिछले चुनाव में सपा से गठबंधन किया था. ऐसे में पार्टी को फायदे की उम्मीद थी किन्तु नतीजे ऐतिहासिक हार का ग्राफ लेकर आए. 403 सीटों वाली विधानसभा में पार्टी को मिले सात विधायकों में से अमेठी और रायबरेली के विधायक पार्टी तक छोड़ चुके हैं. इसके अलावा जितिन प्रसाद जैसे करीबी नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
ऐसे में उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास कोई बड़ा राजनीतिक चेहरा तक नहीं हैं. वहीं जो नेता यूपी के हैं उन्होंने दिल्ली दरबार में जगह बना ली है. ऐसे में पार्टी को खड़ा करने की कोशिश कर रहीं प्रियंका के लिए ये विधानसभा चुनाव एक ट्रायल मैच साबित हो सकता है.
चिराग की राह पर तो नहीं प्रियंका
बिहार विधानसभा चुनाव 2021 के दौरान लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने पिता राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद सीएम नीतीश से बगावत कर उन्हें ही चुनौती दी. उनकी रैलियों में खूब भीड़ जुटी. मीडिया में खूब कवरेज भी मिला किन्तु नतीजों में जब एक सीट आई तो चिराग द्वारा फुलाया गया गुब्बारा हवा हो गया. UP Elections 2022 को लेकर प्रियंका की रैलियों आई भीड़ और समर्थन को उनकी हवा की तरह पेश किया जा रहा है.
राजनीति अनिश्चितताओं को खेल हैं किन्तु एक यथार्थ सत्य ये भी है कि किसी भी राजनीतिक दल की रैलियों में आई भीड़ को देखकर वोटों का अंदाजा लगाना बचकानापन है क्योंकि पीएम मोदी की ही रैलियों में भीड़ तो दिल्ली और बिहार के 2015 विधानसभा चुनावों के दौरान भी आई थी किन्तु भाजपा को दोनों ही राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा.
वर्तमान परिदृश्य में आए दिन ओपिनियन पोल्स में भाजपा और सपा की टक्कर के दावे तो किए जा रहें किन्तु ओपिनियन पोल्स के अनुसार तो आज भी कांग्रेस चौथे स्थान पर ही दिखती है और यहीं से ये सवाल जन्म लेता है कि क्या प्रियंका उत्तर प्रदेश में चिराग पासवान की राह पर चल रही हैं?
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