डीएनए हिंदी: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 विधानसभा सीटों पर पहले चरण की वोटिंग गुरुवार को हुई. 11 जिलों में कुल 60.17 फीसदी वोट पड़े हैं. 2017 में इस क्षेत्र में 63.5 फीसदी से ज्यादा वोट पडे़ थे. अब सियासी जानकार तरह-तरह की अटकलें लगा रहे हैं. किसी को भारतीय जनता पार्टी (BJP) का पड़ला भारी लग रहा है तो किसी को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) गठबंधन का. पहले चरण की वोटिंग में किसके पक्ष में गई हैं इस पर बहस भी तेज हो गई है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 80-20 फॉर्मूले पर भरोसा कर रहे हैं. यानी 80 प्रतिशत हिंदुओं और 20 प्रतिशत मुसलमानों के बीच धार्मिक रेखा पर सियासी ध्रुवीकरण. सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को भरोसा है कि उनकी सोशल इंजीनियरिंग काम करेगी. पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम समीकरणों की वजह से उन्हें अपनी जीत का भरोसा है.
गुरुवार को हुए मतदान में मुस्लिम वोटरों ने अहम भूमिका निभाई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 में से 7 जिलों में मुस्लिम आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है. मुस्लिम मतदाताओं के वोट निर्णायक जनादेश यहां दे सकते हैं.
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अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग असरदार!
सोशल इंजीनियरिंग पर बुद्धिमानी से काम कर रहे अखिलेश यादव ने गैर-मुस्लिम वोटबैंक को जाति के आधार पर कई हिस्सों में बांटने की कोशिश की. उदाहरण के लिए मुजफ्फरनगर में 41 फीसदी मुसलमान हैं फिर भी सपा ने इस क्षेत्र में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा.
बीजेपी से नाराज हैं जाट वोटर?
ज़ी न्यूज़ के जमीनी विश्लेषण मुताबिक मुस्लिम मतदाताओं ने सर्वसम्मति से सपा और जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले रालोद के गठबंधन को वोट दिया है. 2017 में बीजेपी ने इस क्षेत्र की 58 में से 53 सीटें जीती थीं लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार इस क्षेत्र में इसके ठीक उलट नतीजे आ सकते हैं.
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2017 में यहां जाट समुदाय ने यहां एकजुट होकर बीजेपी को वोट किया था. हालांकि इस बार ऐसा लगता है कि जाट मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक दल के पीछे जा रहा है. आरएलडी और सपा का गठबंधन अपनी मजबूत पकड़ बना रहा है. हालांकि बीजेपी के साइलेंट वोटर भी बेहद निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पश्चिमी यूपी में किसका जलवा असरदार रहा है यह बाद साफ तो 10 मार्च को ही हो सकेगा.
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