संत रविदास को संत रैदास या गुरु रविदास भी कहा जाता है. भक्ति काल के इस महान संत और कवि को मानने वाले दुनिया भर में हैं. संत रविदास ने सामाजिक विकृतियों और छूआछूत जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ भी आवाज उठाई थी. उनके लिखे दोहे और पंक्तियों पर कई भाषा में अनुवाद हो चुका है और आज भी लोगों को मुंहजबानी कई पंक्तियां याद हैं. जानें, संत रविदास की जिंदगी के कुछ किस्से जिसने उन्हें इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया.
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संत रविदास भक्ति काल के निर्गुण परंपरा के भक्त कवि थे. वह सामाजिक कुप्रथाओं और कुरीतियों के खिलाफ आजीवन लड़ते रहे थे. सामाजिक बदलावों के लिए उन्होंने अपन दौर में कई साहसिक प्रयोग भी किए थे जिसकी वजह से उनका व्यक्तित्व आज भी बेहद लोकप्रिय है. उन्होंने छूआछूत जैसी कुप्रथाओं का पुरजोर विरोध किया. अपनी कविताओं में वह दलितों, शोषितों और समाज के सताए गए लोगों को आगे ले जाने की बात करते थे.
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संत रविदास की जयंती पर हर साल वाराणसी में भव्य आयोजन होता है. यहीं उनका जन्म भी हुआ था. देश भर से लोग इस समारोह में शामिल होने के लिए जुटते हैं. माघ पूर्णिमा पर उनकी जंयती मनाई जाती है. इस साल यह 16 फरवरी को पड़ रही है. पंजाब में अनुसूचित जाति की आबादी काफी ज्यादा है और इस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में वाराणसी जाते हैं. इस वजह से ही चुनाव की तारीख आगे बढ़ा दी गई है.
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संत रविदास ने अपनी कविताओं में काल्पनिक शहर बेगमपुरा का बार-बार जिक्र किया है. बेगमपुरा यानी एक ऐसा शहर जहां कोई गम, दुख, तकलीफ न हो. इस शहर के लिए उनकी कल्पना थी कि यह मानवीयता और इंसानियत से भरा शहर होगा. ऐसा शहर जिसमें जात-पात, धर्म, ऊंच-नीच के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता हो. जहां लोग प्रेम और करुणा से रहते हों.
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संत रविदास के भक्ति काव्य और व्यक्तित्व को उनके जीवन में ही प्रसिद्धि मिल गई थी. भक्ति काल की मशहूर कवि मीरा बाई ने संत रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना था. मीरा ने भी अपने पद्य और दोहों में उन्हें अपना गुरु मानने का जिक्र किया है.
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संत रविदास के क्रांतिकारी और आधुनिक विचारों की धार इतनी तेज है कि भक्त कवि होने के बाद भी उन्हें आधुनिक चिंतको ने भी श्रद्धेय माना है. संविधान निर्माता बाबा साहेब भी संत रविदास के आधुनिक विचारों से प्रेरित थे. उन्होंने अपनी किताबों और लेखों में भी इसका जिक्र किया है.