गोवा विधानसभा की 40 सीटों पर 14 फरवरी को मतदान है. 2017 Goa Vidhan Sabha Election में बीजेपी की तुलना में कांग्रेस ने ज्यादा सीटें जीती थीं. उस वक्त दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने दिल्ली में रक्षा मंत्री का पद छोड़कर राज्य की बागडोर संभाली और सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. 2022 आते-आते स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इस वक्त असेंबली में कांग्रेस के सिर्फ 3 विधायक हैं. जानें गोवा में कांग्रेस के सामने इस बार कौन सी चुनौतियां हैं.
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गोवा में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट पुराने नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद नेतृत्व का है. कई बड़े दिग्गज पार्टी छोड़ चुके हैं और इन हालात में चुनाव में उतरना उम्मीदवार और कार्यकर्ताओं दोनों के मनोबल को कमजोर करने के लिए काफी है. पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो (Luizinho Faleiro) ने सितंबर में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. कार्यकारी अध्यक्ष अलेक्सो रेजिनाल्डो लोरेंको ने भी दिसंबर में पार्टी छोड़ दी थी. गोवा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एलेक्सो रेजिनाल्डो लौरेंको भी पार्टी छोड़ चुके हैं. इस वक्त गोवा कांग्रेस के पास न तो कोई बड़ा चेहरा है और न मजबूत संगठन.
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बीजेपी के लिए भी स्थितियां आदर्श नहीं है लेकिन कांग्रेस की तुलना में स्थिति थोड़ी मजबूत है. बीजेपी को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तुलना में 8% ज्यादा मिले थे. बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है और केंद्रीय नेतृत्व भी चुनाव प्रचार कर रहा है. कांग्रेस की तुलना में बीजेपी का संगठन और चुनावी रणनीति जरूर बेहतर है. इसके अलावा, PM Modi का चेहरा भी बीजेपी के लिए हर राज्य में एक प्लस पॉइंट है.
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आम आदमी पार्टी ने पिछली बार भी चुनाव लड़ा था लेकिन कोई सीट नहीं मिली थी. इस बार भी आम आदमी पार्टी मैदान में है. चुनावी रणनीति के जानकार मान रहे हैं कि आप उम्मीदवार वोट काटेंगे और उनके वोट काटने का नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ सकता है. अगर आप पार्टी की कोई सीट आती है तो भी कांग्रेस के लिए मुश्किलें कम नहीं होंगी. पिछले 5 साल में जमीन पर थोड़ी-बहुत ही सही AAP की सुगबुगाहट जरूर हुई है.
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इस बार के चुनाव में टीएमसी मैदान में है. हालांकि, टीएमसी के अंदर भी कम उठा-पटक नहीं है लेकिन फिर भी टीएमसी के मैदान में होने से कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ने जा रही हैं. वोट काटने के अलावा एक दिक्कत है कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने टीएमसी का दामन थाम लिया है. ऐसे में पार्टी के संगठित और पुराने वोट का छिटकना तय है.