बीएसपी सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की अब तक 4 बार सीएम रह चुकी हैं लेकिन इस चुनाव में उनकी सक्रियता जमीन पर कम ही दिख रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार के चुनाव नतीजे उत्तर प्रदेश की राजनीति के साथ मायावती के राजनीतिक भविष्य को भी तय करने वाले साबित होंगे.
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बीएसपी सुप्रीमो और उनकी पार्टी के लिए ये चुनाव नतीजे बहुत अहम हैं. कुछ सर्वे में उन्हें 2017 के चुनावों से भी कम सीटें मिलती दिख रही हैं और पार्टी का वोट शेयर भी गिरने का अनुमान जताया जा रहा है. कुछ सर्वे में तो बीएसपी और कांग्रेस को लगभग बराबर या उससे भी कम सीटों का अनुमान जताया जा रहा है. अगर ये सर्वे नतीजों में बदलते हैं तो मायावती के राजनीतिक भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जाएंगे.
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प्रियंका गांधी के बारे में इस चुनाव में विरोधी भी मान रहे हैं कि उन्होंने जमीन पर काफी मेहनत की है. विश्लेषकों का कहना है कि भले ही सीटों के लिहाज से कांग्रेस को बड़ा फायदा न भी मिले, तब भी भविष्य के लिए जमीन मजबूत करने के लिहाज से यह सक्रियता अहम है. कांग्रेस की जमीन पर लगातार सक्रियता और उसी दौरान बीएसपी का एक्टिव नहीं होने का बुरा असर भी मायावती की पार्टी पर ही पड़ सकता है.
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बीएसपी के कोर वोटर माने जाने वाले समुदायों के बीच पिछले कुछ सालों में चंद्रशेखर एक युवा विकल्प बनकर सामने आए हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि आने वाले वर्षों में अगर चंद्रशेखर की सक्रियता और लोकप्रियता दोनों बनी रही तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा बीएसपी को ही मिलेगा.
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बीएसपी को 2012 चुनावों में 25.9 प्रतिशत वोट और 80 सीटें मिली थी. 2017 में बीएसपी का वोट शेयर 22.2 प्रतिशत रहा और पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई थी. 2027 में अगर ग्राफ इसी तरह नीचे गया तो बीएसपी और मायावती के राजनीतिक कद दोनों के लिए यह बहुत धक्का पहुंचाने वाला होगा.
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इस चुनाव में बीजेपी को सत्ता की दौड़ से यूं भी बाहर ही माना जा रहा है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर पिछले चुनाव जितने भी वोट शेयर बचे रहे तो भी वह एक उपलब्धि होगी. ज्यादातर ओपिनियन पोल में उन्हें वोट शेयर में भी नुकसान दिखाया जा रहा है. वोट शेयर घटने का सीधा मतलब होगा कि बीएसपी के कैडर वोट भी अब दरक चुके हैं.