यह वही उत्तर प्रदेश है जिसकी राजनीति को लेकर कहा जाता है था कि यहां किसी भी पार्टी की सत्ता कभी रिपीट नहीं होती लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व वाली बीजेपी (BJP) ने इसे संभव कर दिखाया है. हालांकि पार्टी की सीटों में एक अच्छी-खासी गिरावट है लेकिन खास बात यह है कि पार्टी बहुमत से आंकड़े से कोसों आगे है जिसके चलते इसे अभी भी एक प्रचंड जीत ही माना जा रहा है. ऐसे में सोचने वाला विषय यह है कि पांच साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद बीजेपी इतनी आसानी से चुनाव कैसे जीत गई?
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दरअसल इस बार बीजेपी ने यूपी के लिए M-Y Factor खेला. सपा जहां यादव मुस्लिम वाला M-Y चक्रव्यूह गढ़ती है तो इस बार भाजपा के M-Y का मतलब मोदी और योगी रहा. पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की जुगलबंदी लोगों को इतनी भाई कि वोटों की बरसात हो गई. नतीजा यह रहा कि जिस सत्ता विरोधी लहर का पार्टी को डर था वो ही उसके लिए जीत की वजह बन गई.
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विपक्ष ने इस चुनाव में कुछ ज्वलंत मुद्दे उठाए थे जिसमें लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में 3 अक्टूबर को किसानों पर गाड़ी चढ़ाने की घटना से लेकर हाथरस रेपकांड का मामला भी था. इन मामलों को लेकर एक बार बीजेपी भी बैकफुट पर थी. वहीं लखीमपुर कांड में केंद्रीय मंत्री के बेटे के इस घटना में कथित तौर पर शामिल होने को विपक्षी दलों ने जबर्दस्त मुद्दा बना दिया था लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों ने ऐसा चक्र चलाया का विपक्षी रणनीति धरी की धरी रह गई. चुनाव नतीजे आए तो लखीमपुर खीरी जिले की आठों सीटों बीजेपी की झोली में आ गईं और अखिलेश यादव का दांव फेल हो गया.
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योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर से विधानसभा चुनाव में उतरे थे और उन्होंने एक लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की. यही नहीं, गोरखपुर की सभी 9 सीटें बीजेपी के खाते में आईं. बुंदेलखंड रीजन की सभी 19 सीटें, हरदोई जिले की सभी 8 सीटें और सोनभद्र की सभी 4 सीटें भी भाजपा के पाले में आ गईं. सीतापुर की 9 में से 8 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. राजनाथ सिंह के लोकसभा क्षेत्र लखनऊ की 9 में से 7 सीटों पर भगवा झंडा लहराया. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 7 सीटों पर बीजेपी का कब्जा हुआ तो एक सीट अपना दल (सोनेलाल) ने जीती. बरेली की 9 में से 8 सीटें और देवरिया, शाहजहांपुर और गोंडा में 7-7 सीटों पर जीत मिली और बीजेपी ने कई जिलों में स्वीप किया.
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खास बात यह है कि इस चुनाव में बीजेपी ने नारी शक्ति को काफी अहमियत दी. चुनावों में 48 महिलाओं को टिकट दिए गए. नतीजा भी सुखद रहा. 48 में से 29 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. यह बीजेपी की तरफ से जीतने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या है. पार्टी ने महिला उम्मीदवारों पर ही दांव नहीं लगाया, बल्कि महिला वोटरों को ध्यान में रखकर खास रणनीति अपनाई और सबसे ज्यादा मुद्दा कानून व्यवस्था का उठाया.
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भाजपा ने उम्मीदवार चुनने में अपने सर्वे और ग्राउंड लेवल कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर भरोसा किया. इसके आधार पर उसने 104 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए. इनकी जगह नए चेहरों को तवज्जो दी जिनमें से 80 जीत गए हैं. भाजपा ने 214 मौजूदा विधायकों को फिर से मैदान में उतारा, जिनमें से 170 जीत हासिल करने में कामयाब रहे और यह टिकट काटने का फॉर्मूला पार्टी के लिए सटीक रहा.