डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश चुनाव (Uttar Pradesh Elections) पर पूरे देश की नजर है. राज्य में होने वाले सियासी रण में कौन विजय हासिल करेगा यह सभी जानना चाहते हैं. चुनावों की तारीखों का ऐलान होते ही राज्य में दल-बदल के खेल ने जोर पकड़ लिया है. यूपी में अभी तक घटनाक्रम को देखते हुए सभी यही कह रहे हैं कि इसबार का विधानसभा चुनाव भाजपा और सपा के बीच ही होगा.
प्रदेश में बड़ी ताकत रखे वाली मायावती की पार्टी BSP अभी तक उतनी एक्टिव नजर नहीं आ रही है, जितना वो पहले के चुनावों में रहती थी. यही वजह है कि इसपर अब सवाल उठने लगे हैं.
'अघोषित समझौते' के कयास क्यों लगाए जा रहे हैं?
दरअसल उत्तरप्रदेश के लोकसभा चुनावों में गठबंधन होने के बावजूद भी सपा और बसपा मिलकर भी 15 सीटें ही जीत पाईं थीं. दोनों दलों को एकसाथ आने पर मुस्लिम वोट तो एकमुश्त मिला था लेकिन सपा को एक जाति विशेष के वोट का एक बड़ा हिस्सा उससे छिटक गया था.
पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही दोनों दलों के नेताओं ने एकमंच पर आकर तमाम गले-शिकवे दूर करने का दिखावा किया हो लेकिन जमीन पर दोनों ही पार्टियों के समर्थकों को यह बात शायद पसंद नहीं आई थी और इसका असर लोकसभा चुनाव के परिणाम में देखने को मिला. सपा ने अपने गढ़ कन्नौज और फिरोजाबाद जैसी सीटें ही गंवा बैठी.
भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहीं विपक्षी पार्टियां
सियासी जानकारों की मानें तो इस 'अघोषित समझौते' में हर उस फॉर्मूले पर काम किया गया है, जिससे भाजपा को नुकसान पहुंचाया जा सकता है. एक जमाने में मुलायम सिंह यादव को भले ही अगड़ी जातियां वोट के साथ-साथ मान सम्मान देती थीं लेकिन मोदी युग की शुरुआत ही वो उनसे छिटक गईं. इस चुनाव में भी अगड़ी जातियों का वोट बीजेपी के पक्ष में जाने का अनुमान लगाया जा रहा है.
पिछड़ों को साधने में जुटी सपा
अब सपा द्वारा भाजपा को उस जगह पर चोट पहुंचाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया गया है, जहां से उसे सबसे ज्यादा फायदा मिला है यानी पिछड़े और दलितों के अतिरिक्त वोट में सेंध. पिछले कुछ दिनों में स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कुछ और नेताओं द्वारा भाजपा पर पिछड़ों और दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ना भी इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. बसपा की सरकार में कद्दवार नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य हल्का मंत्रालय मिलने से असंतुष्ट थे. उनके साथ कई और नेताओं ने भी यही कारण बताते हुए पार्टी छोड़ी है.
क्या कहती है शिवसेना की एंट्री
दरअसल इन कयासों को और बल तब मिलता है जब महाराष्ट्र में भाजपा की लंबे समय तक सहयोगी रही शिवसेना भी यूपी में चुनाव लड़ने का ऐलान करती है. शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि है कि वो भी यूपी में 100 से 150 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. भाजपा और शिवसेना का वोट एक ही है. वैसे तो शिवसेना का यूपी में कोई खास वजूद नहीं है लेकिन अगर वो करीबी मुकाबलों वाली सीटों पर भाजपा का हजार से डेढ़ हजार वोट भी काटती है तो ये भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है. ऐसे में अगर कहा जाए तो कि यूपी में विपक्ष के बीच भाजपा को रोकने लिए अघोषित समझौता हुआ है तो शायद गलत न हो.
- Log in to post comments