शोभित जायसवाल
अमेरिका के डॉक्टरों ने कमाल कर दिया. कल की खबर है कि उन्होंने सूअर का दिल निकालकर एक हार्ट पेशेंट को लगा दिया और उसकी जान बचा ली. मेडिकल क्षेत्र में इस काम को बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है. मरीज अभी स्वस्थ है लेकिन डॉक्टरों की निगहबानी में है.
ये सूअर कोई आम सूअर नहीं था. बीते कई सालों से अमेरिकी डॉक्टर ऐसे कई सूअरों को पाल पोस रहे थे. इन्हें जेनेटिकली मॉडिफाइड सूअर कह सकते हैं. इनके हार्ट से ऐसे जीन निकाल लिए गए जो इंसानों के काम के नहीं थे. यानी सूअर के हार्ट को मनमाफिक तैयार किया फिर उसे मरीज में फिट किया गया.
डॉक्टरों की इस कामयाबी पर नीतिशास्त्र खासकर बायो एथिक्स वाले सामने आ गए हैं. उनके कुछ सवाल हैं जिनके जवाब दिए भी जाने चाहिए. इसमें पहला और काफी पुराना सवाल पशु के अधिकारों का है. अगर हम यह मानते हैं कि पशु को जीने का उतना ही हक हासिल है जितना इंसान को तो एक पशु का कोई अंग निकाल कर इंसान को लगा देना कितना जायज है, नैतिक है?
इसमें लाइफ सेंट्रिक एप्रोच मानती है कि हर इंसान का फर्ज है कि वह खुद को कुदरत का हिस्सा माने. यानी जियो और जीने दो. दूसरी ओर मानव केंद्रित एप्रोच कहती है कि मानव के पास सोचने की शक्ति है इसलिए उसकी जिंदगी बचाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है. यानी कुदरत की हर शय, इंसान के काम में आने के लिए है.
दूसरी बात यह है कि इंसानों के जिस्म में किसी दूसरे जानवर का अंग फिट करने से क्या मुश्किल होंगी, उसको आज नहीं कहा जा सकता. क्या इससे यह खतरा नहीं होता कि सूअर का दिल लगे इंसान के जीन बदल जाएंगे.
ऐसा तो नहीं होगा कि उस इंसान के वंशजों में ऐसे बदलाव आ जाएं जिनकी कल्पना न की हो. कल्पना ही सही मगर मिसाल के लिए जैसे फिल्म ‘द वुल्फ‘ (1994) में नायक जैक निकल्सन को एक बार भेड़िया काट लेता है और धीरे धीरे जैक का जिस्म एक भेड़िये के रूप में बदलने लगता है फिल्म के अंत में वह पूरी तरह से भेड़िया बन जाता है.
तीसरे इससे यहूदी और इस्लाम मजहब के लोगों के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो सकता है कि जिंदगी बचाएं या मजहब. इसमें मुझे लगता है कि शुरुआत में तो मनाही होगी लेकिन वक्त के साथ नया मशविरा सामने आ जाएगा. जैसा कि हार्ट के वॉल्व के मामले में है जो कि सूअर के जिस्म का हिस्सा होते हैं और उनको इंसानों में लगाया जाता है.
बहरहाल उत्तर प्रदेश के बृज इलाके में एक कस्बा है, सोरों नाम का. सोरों को तुलसीदास का जन्म स्थान भी माना जाता है. सोरों से जुड़ी हिंदू मिथकीय कहानी यह है कि यहां पर वराह (यानी जंगली सूअर) के रूप में विष्णु के तीसरे अवतार ने जन्म लिया. इस वराह ने धरती को खत्म होने से बचाया था.
हिंदी भाषा के आलोचक राम विलास शर्मा ने अपनी किताब ‘भाषा और समाज’ में वराह शब्द को अवेस्ता (ईरानी ग्रंथ) में वराज ( जंगली सूअर) के तुल्य बताया है. खैर जो भी हो अगर इंडोलॉजी के हिसाब से सोचें तो क्या कह सकते हैं कि एक बार फिर वराह अवतार जेनेटिकली मोडीफाइड होकर आए हैं, लोगों का जीवन बचाने.
(शोभित जायसवाल पत्रकार हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से यहां साभार प्रकाशित किया जा रहा है. लेखक के विचार निजी हैं.)
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डॉक्टरों की इस कामयाबी पर बायो एथिक्स वाले सामने आ गए हैं