जापान में पतझड़ का मौसम शुरू हो गया है. यह घनघोर सर्दी का मौसम भी है. धूप निकलती है लेकिन सर्द हवाएं सायं-सायं करते हुए चेहरे पर चोटें मारती हैं. खासकर कान और नाक तो इतना सुन्न हो जाता है और लगता है कि वो मेरे शरीर से कट कर कहीं गिर गए हों. कोरोना के कारण मास्क पहनना अनिवार्य है तो नाक तो ढंकी रहती है पर कान से ठंड पूरे शरीर में घुस जाती है.
बारिश कभी भी होने लग जाती है
मौसम कभी भी बदल जाता है. खूब धूप निकलेगी लेकिन कभी भी बारिश शुरू हो जाती है. छाता जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है उसके बिना घर से निकलना ठीक नहीं है. हाथों को दस्तानों से बचाया जा सकता है बस कान खुले रह जाते हैं. सोचता हूं कि आंखों कि तरह कानों को खुला ही रहने दूं. देश पराया है तो क्या हुआ कान तो भारतीय हैं. वैसे भी भारतीय कानों की तो कुछ खास विशेषताएं पुराणों और महाकाव्यों में आ ही गई हैं तो उनपर और कभी बात करूंगा.
यहां गुलाब के पौधे काफी लंबे होते हैं
जापान सर्द हवाओं का देश है. टोक्यो के भूकंप डरावने हैं. इस समय यहां के अधिकतर पेड़ गंजे हो गए हैं और उनपर नए पत्ते बेहद खूबसूरत लगते हैं. लाल पत्तों वाला पेड़ मेरे लिए अजूबा हैं तो पीले पत्तों वाला पेड़ अद्भुत. मैं जिस पार्क में घूमने जाता हूं, वहां मैंने एक नीम का पेड़ भी देखा लेकिन फिलहाल वह पूरी तरह से पत्तेविहीन है. गुलाब के फूल का पौधा करीब छ फुट या सात फुट जितना बड़ा होता है.
श्रमिक शहर में बाहर से आते हैं
इस समय जापानी लोग अपने घरों की सफाई और पेड़ों की कटाई कराते हैं. मजदूर टोक्यो शहर में बाहर से आते हैं. वे गाड़ी में भरकर यहां पहुंचते हैं. वे दिनभर पेड़ पौधों की कटाई, छंटाई पूरी शिद्दत से करते हैं.
सफेद थैलियों में बिखरे पत्ते समेट लेते हैं जापानी
पतझड़ है तो चारों तरफ सूखे पत्ते सब जगह बिखरे हुए दिखेंगे लेकिन हर सुबह जापानी लोग उन्हें बुहार कर सफेद थैली में भर देते हैं. कूड़ा फेंकने के बेहद कड़े नियम हैं. गीला कूड़ा यानी बचा खाना सब्ज़ी के छिलके या और कुछ गीला हरे रंग की ही थैली में रखेंगे और उसके लिए दिन तय है सोमवार और वीरवार. पॉलीथीन के लिए सफेद रंग की थैली होती है. उसके लिए शुक्रवार का दिन तय है और कागज कूड़ा वाला या कपड़े वाला यानी जिसे जलाया जा सके. उसके लिए भी सफेद रंग की पॉलीथीन चाहिए और उसी में सब रखना है. उसके लिए मंगलवार का दिन तय है. कूड़े को घर के बाहर तय स्थान पर ही रखा जाता है. अगर आपने गलत दिन में गलत रंग की कूड़े वाली थैली रख दी या फिर गलती से दूसरा कूड़ा दूसरे रंग की थैली में रख दिया तो उस कूड़े की थैली को नहीं उठाया जाता. साथ ही चेतावनी के रूप में थैली पर एक पर्ची चिपका दी जाती है. कूड़ा उठाने वाली गाड़ी तय दिन पर 9 बजे तक आ जाती है मुझे कई बार चेतावनी मिल चुकी है.
यहां सर्द हवाओं का कहर जारी है और नए वर्ष के आगमन को लेकर लोग काफी उत्साहित रहते हैं. यहां नए वर्ष का बहुत क्रेज़ है. अभी से बाजार सज गए हैं. कुछ दिनों बाद यूनिवर्सिटी 10 दिनों के लिए बंद होगी. ये मेरे लिए खराब समय होगा क्योंकि उनदिनों मैं कहां जाऊंगा पता नहीं? घर में 10 दिन गुजारना अकेले बहुत मुश्किल होगा. मुझे जापानी भाषा आती नहीं जो बाहर घूमने जा सकूं. फिर सर्द हवाओं का कहर और पराये देश में बीमार होने का जोखिम. बाहर से ये सपनों का देश लगता है लेकिन सूनापन अजनबियत और बेहद अकेले होने का एहसास उन सपनों को तोड़ देता है जो दूर से बेहद सुहाने लगते है.
मैंने सुना कि हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक सत्यप्रकाश मिश्र (Satyaprakash Mishra) भी यहां आए थे पढ़ाने लेकिन इस अकेलेपन के कारण शायद दो महीने में ही इस्तीफा देकर भारत वापिस चले गए थे. मुझे भी ढाई महीने में ऐसा ही एहसास होता है कभी—कभी... देखता हूं कब तलक खुद को समझा पाऊंगा...
(इनदिनों सूरज बड़त्या जापान में रह रहे हैं. उनकी फेसबुक वॉल से साभार)
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