माताएं हमेशा सिंगल ही होती हैं. आज एक पुरानी तस्वीर है अचानक मिल गई. इस तस्वीर में मेरी दो छोटी बहनें भी साथ में हैं. माता-पिता अपने आपसी मतभेदों में इतने उलझे रहते थे कि बच्चों को संभालने की ज़िम्मेदारी मुझपर आ जाती थी. दोनों मेरी गोद में खेलती हुई बड़ी हो गईं.
अब हम तीनों की गोद में दूसरी बच्ची आ गई है. बड़े भाई की बेटी है लेकिन उनके हमेशा नशे में रहने से इसे पिता का चेहरा याद नहीं है. जब वह जन्मी ही थी कि उन दिनों उसकी मां छोड़कर चली गई थी. उसका सानिध्य भी मिला नहीं. अब हम तीन बहनों को मां समझती है. मेरी मां को वह हमेशा नानी ही कहती थी.
कभी नहीं पूछा कि उसके पिता कौन है? शुरू-शुरू में उसके भीतर एक गहरा डर और असुरक्षा था. इधर देखते ही देखते वह गायब हो गया है. बहुत बोलती है, बहुत स्पष्ट है और किसी बात से डरती नहीं है. हमें यह बदलाव देखकर गहरी खुशी होती है.
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गांवो में बहुत सी स्त्रियों की स्थिति दयनीय है. अनचाहे बच्चे होते ही जाते हैं. विवाह के बाद एक स्त्री अपने पति को संबंध बनाने से रोक नहीं पाती. 'ना' नहीं कह पाती. उसके न का कोई मतलब भी नहीं होता. मार खाकर कमर टूट जाने से अच्छा है बिना इच्छा लेट जाए. बच्चे न हुए तो सब बांझ-बांझ कहते नहीं थकते. बच्चा गर्भ में आ गया तो झगड़े होने पर चरित्र पर लोग उतर जाते. कहते कि पता नहीं किसका बच्चा है?
यह सबसे आसान तरीका है जलील कर स्त्री को तोड़ने का पर एक दिन स्त्री कह देती है कि यह किसी का बच्चा नहीं है. सिर्फ़ मेरा बच्चा है तब सबको सांप सूंघ जाता है. कैसे सिद्ध करेंगे कि कौन किसका बेटा है? किसको अपनी संपत्ति का वारिस समझेंगे? जब स्त्री ही कह दे कि बच्चा किसी का नहीं है. ब्याह कर घर आई स्त्री को वारिस पहचानने वाला यंत्र समझते हैं . ऐसे लोगों को बड़े साहस से कुछ स्त्रियां न कहकर अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहीं हैं.
फिलहाल हम तीनों बहनों को एक साथ मां सुनना अच्छा लग रहा है. छोटी सी उम्र में हमारी बच्ची को भी लगता है कि मां सिंगल ही होती है.
(जसिंता केरकेट्टा फ्रीलांस राइटर हैं. बहुत अच्छी कविताएं भी लिखती हैं. यह पोस्ट उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.)
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