• रति सक्सेना

आजकल मैं देख रही हूं कि उम्र को लेकर बड़ा घालमेल हो रहा है, कॉमेडियन तो खास वार करते हैं. सोचा जाता है उम्र का तकनीकी और समझदारी से 36 का आंकड़ा होता है. उम्र दराज मूर्ख होते हैं, ना फैशन जानते और न ही तकनीक जबकि उन्हें समझना चाहिए कि तकनीक समझ काल के अनुरूप बदलती रहती है और हर काल में अपनी समस्या और समाधान होते हैं.

चलिए मैं आपको 100 साल पुरानी पीढ़ी से रूबरू करवा दूं. 

मेरी मां उस पीढ़ी की थी जब महिलाएं पर्दे वाले टांगे में ही घर से निकलती थीं, वह भी धोती के उपर चादर पहन कर. मां भोपाल की थी तो पर्दा कड़ा था लेकिन आर्यसमाजी, समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम बड़े मामा की सोहबत में खूब पढ़ लिख गई.
  
शादी के बाद भी बड़े मामा उन्हें साहित्य रत्न आदि की परीक्षा दिलवाने लाहौर ले जाते थे. मां जानती थी उनकी टीचर बनने की हसरत कभी पूरी नहीं होगी लेकिन वह पढ़ना कभी नहीं छोड़ पाई. उन दिनों घर मे जो बिजली के उपकरण आते थे, बहुत सम्भाल के बापरे जाते थे. बिजली की इस्त्री,  टेबुल फैन, बिजली के पंखें आदि आदि. 

मैं चौथी बेटी थी तो मेरे समय तक मां प्रौढ़ हो रही थीं.  उस जमाने में एक सजग महिला, उस वक़्त महिलाएं किट्टी पार्टी नहीं बल्कि साथ बैठ कर कुछ सामाजिक काम करती थीं. गरीब लड़कियों को मशीन चलाना सीखाना, कुटीर उद्योग संबंधी अहार जिससे वे काम कर सकें. मां को अखण्ड रामायण रखने का बड़ा शौक था और वह बहुत सुन्दर पाठ करती थी. अकेले दम पर 14 घंटे में समापन कर लेती थीं लेकिन मैं दूसरी बात बता रही हूं. मुझे मां ने सिखाया कि बिजली की इस्त्री कैसे ठीक की जाए, फ्यूज कैसे ठीक हो, सिलाई की मशीन कैसे दुरस्त की जाती है, टेबल फैन कैसे चालू किया जाए, ये जुगाड़ तकनीक नहीं थी, बल्कि अपने एकलव्य से सीखी जानकारी थी.

Rati saxena Sanskrita Scholar Kerala

मां को पढ़ाने का शौक था और वह सहायकों के बच्चों को पढ़ती रहती थीं. माली जी के दो सुपुत्र को 8 वीं की परीक्षा में मदद की. उस समय 8 वीं पास करने के बाद नौकरी लग जाती थीं. उन्होंने बिजली विभाग में काम सीखा और अच्छे इलेक्ट्रिकशियन बन गए. वह समय था जब आदमी अहसान मानता था. वे गाहे—बगाहे आते और घर का बिजली का समान देख कर जाते.  

मां ने उन्हीं को देख-देख बिजली की महारत हासिल कर ली. उन्हें हर नई चीज़ सीखने का शौक था. केक बाजार में आने से पहले वे सिगड़ी पर रखने वाला ओवन खरीद लाई और होम साइंस पढ़ने वाली बहन ने बैकिंग सीख ली. कुछ दिन बाद सांगानेर गई और यूं ही तन्दूर बनाना सीख लिया. यानी की अपने काल की हर नई अनजानी चीज़े सीखती रहीं और हमलोगों को सिखाती रहीं.
 
यदि कंप्यूटर काल तक जी जाती तो, उनके लिए यह सीखना मुश्किल नहीं होता. यानी कि आधुनिकता हर काल में होती है और हर काल में इंसान को कुछ नया सीखना होता है. लोग बढ़ती उम्र और बदलते वक्त के साथ चीजें सीखते हैं इसलिए यह कहना कि जो उम्र दराज है,  वे मूर्ख हैं, बेहद सतही बात है.

(रति सक्सेना केरल में रहती हैं. वह संस्कृत की विद्वान हैं. कविताएं लिखती हैं. कई भाषाओं की कविताओं का अनुवाद कर चुकी हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया जा रहा है)

Url Title
Ageism stereotyping technique bad jokes social media post criticism
Short Title
उम्र का तकनीक और समझारी से नहीं होता 36 का आंकड़ा
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
सांकेतिक तस्वीर.
Caption

सांकेतिक तस्वीर.

Date updated
Date published