जिन औरतों के पति सूरत-सीरत में बीवी से कमतर रहे वह ज़िन्दगी भर उनकी चौकीदारी करते रहे कि-कौन से यार को रिझाने के लिए सज संवर रही हो!भले घर की औरतें रक्कासाओं की तरह नहीं रहतीं... इस घर में रहना है तो यहां के नियम क़ायदे से रहो.
जिन औरतों के पति सूरत-सीरत में बीवी से बीस रहे वह ज़िन्दगी भर जो भी किये दया और हिक़ारत से किये..उनकी पत्नियां दिन में अधिक दास्य भाव से टहल करती रहीं और रात में अधिक विनीत भाव से सिकुड़ी सिमटी प्रस्तुत हुईं.
दुत्कारी गई पत्नियां अधिक उपयोगी साबित हुईं
दुत्कारी गई पत्नियां अधिक उपयोगी साबित हुईं. यह बिस्तर के किनारे पड़कर या पूजा में उनके बगल बैठकर ही निहाल रहीं. इन्होंने प्रेम के दो बोल बिना भी चार बच्चे जने. सास-ससुर,देवर-ननद के कुबोल सुने...
इन्होंने कमाऊ सुदर्शन पति की छोटी सी छोटी इच्छा को आदेश मानकर पूरा किया. इन्होंने ख़ुद को मिटाया ताक़ि सर की छत और समाज की इज़्ज़त बची रहे.
इन औरतों के मां-बाप ने कमाऊ दामाद से इन्हें ब्याहकर अपना तौक़ उतारा,बदले में कोई शिकायत न आये इसका वचन लिया. इनके बच्चे बाप की तरह गौरांग,भव्य हुए और अपनी मां के चुप्पेपन,फूहड़ता और घबराहट पर लज्जित रहे.. मां इनके बाप की चाकर है यह इन्होंने होश सम्हलाते ही समझ लिया था. कमज़ोरों,असहायों और चाकरों से इस देश में प्रेम नहीं किया जाता बल्कि उन्हें और दुहा जाता है यह इन बच्चों ने भली-भांति समझा और जिया.
दुनिया को बुरा कहने से पहले एक बार आईने में देखना…
औरतों ने ही औरतों से कहा कि औरत का जन्म ली हो तो यह सब सहना ही पड़ेगा
यह औरतें गाली पड़ने पर भगवान का शुक्रिया अदा करती रहीं कि कम से कम उनका पति उन्हें मारता तो नहीं, जो मारी जाती रहीं उन्होंने यह कहकर संतोष किया कि कम से कम वह छोड़ी तो नहीं गईं और जो छोड़ी गईं उन्होंने यह कहकर तसल्ली की कम से कम उनके मांग का सेनुर तो सलामत है और जो इसके बाद भी विधवा हुईं उन्होंने कहा कि मेरे पिछले जन्म के करम का फल था यह सब.
पति निर्दोष था, है और रहेगा… औरतों ने ही औरतों से कहा कि औरत का जन्म ली हो तो यह सब सहना ही पड़ेगा.
(ममता सिंह शिक्षिका हैं. पढ़ने-लिखने से विशेष सरोकार है. सामाजिक मुद्दों पर प्रखर विचार रखती हैं.)
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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