एक दिल...ज़िद्दी परिंदा सा
"प्यार बड़ा ज़िद्दी परिंदा है . पिंजरा खुला छोड़ दो..तब भी उड़ता ही नहीं .हथकड़ी तो नहीं पहनाई मैंने,बेड़ियां तो नहीं डाली.फिर चला क्यों नहीं जाता मुझसे दूर?"मुस्कुराते हुए बोली मीरा.
और मैं हैरानी से उसे देख रही थी."डरती नहीं तुम?"
"डरती थी. इतना डरती थी कि आंख उठाकर नहीं देखती थी.सिर गड़ाकर चलती थी. होठों पर मोहब्बत का लफ्ज़ कभी चढ़ने नहीं देती थी.कोई मुझे देखता तो रस्ते बदल देती थी."
Travelogue : दक्षिण भारत का एक दरवाज़ा ऐतिहासिक Mysore भी है
प्यार किया है, व्यापार नहीं!
"तो अब क्या हो गया? बाग़ी बनकर बोलने लगी तुम!!"
"जो नहीं किया, उसका इलज़ाम मेरे सिर आ गया. बेरुखी,रुस्वाई,तन्हाई,बदनामी-सबसे नवाज़ दिया गया. तो सब टटोलने के बाद मान लिया मैंने भी- चलो ये पिंजरे खोल दें.वो जो अंदर है उसकी गीली आत्मा को और न जलाएं..इससे क्या हासिल??गीली लकड़ी भी कहीं सुलगती है! लेकिन अब मैं क्या करूँ-प्यार ज़िद कर बैठा है और गीली लकड़ी को सूरज की आंच में सुखा रहा है."-मीरा बोली .
"और लकड़ी ने फिर भी आग नहीं धरी तो?"
"तो...तो मैं क्या करुं? प्यार किया है.व्यापार नहीं. इस हाथ दे,उस हाथ ले.दो कौड़ी का ले तो चार कौड़ी का दे...वैसे भी प्यार देह नहीं है जो जलकर राख़ हो जाए.प्यार आत्मा है-अनंत तक साथ चलता रहेगा.आत्मा कब दिखती है,फिर भी साथ होती है.आत्मा उड़ गई तो जीवन ख़त्म!"
बस एकटक उसे देखती रह गई थी मैं....
(मनीषा चौधरी आकाशवानी में उद्घोषक हैं. लखनऊ में निवास है. यह प्यारा सा क़िस्सा उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है. )
- Log in to post comments