टीवीएफ भारत का पहला ओटीटी. टीवीएफ ने कंटेंट क्रिएशन में यथार्थवाद का पुट जोड़ा है, वही यथार्थवाद जिसे बॉलीवुड मिस कर रहा था. कोटा फैक्ट्री, ट्रिपलिंग, गुल्लक, हॉस्टल डेज, एस्पिरेंट्स, से लेकर पंचायत तक कई चीज़ें कॉमन हैं, वह यह कि पहले कहानियां हमारे आपके बीच से है. यह आसान दिखता है, लेकिन इसे लिखना, फिल्मांकन, एक्टिंग इत्यादि उतना ही आसान नहीं है, सबसे बड़ी चीज है नेचुरलिटी, जो यह सीरीज नहीं खोती, कहीं भी नहीं.
टीवीएफ ने हिंदी साहित्य को बढ़ावा दिया है
टीवीएफ ने हिंदी साहित्य को बढ़ावा दिया है, लेकिन कैसे? वह ऐसे कि एस्पिरेंट्स में अंतिम ऊंचाई कविता आना, उसके बाद अपने सामने संग्रह की बिक्री में वृद्धि हुई. और इस सीरीज में भी एक सीन में प्रधान जी के हाथ में ऊषा प्रियम्वदा की पचपन खंबे लाल दीवारें उपन्यास है.
आगे की बात लिखा गया प्रेम कहानी नहीं है, जबकि प्रेम कहानी तो है. जी हां! रिंकी और अभिषेक त्रिपाठी के बीच ही है, अब मुझे नहीं पता कि प्रेम कहानी का पैमाना क्या है? केवल कह देना और पीडीए करना या महसूस करना. तो इसने महसूस कराया है, बस ध्यान रखिए कि नैचुरल है.
बाकी गांव के मुद्दे हैं, कॉमेडी है लेकिन सिनेमा की मैच्योरिटी भी है, गंभीर मुद्दों को चुपके से कहा है. पंचायत गांव की कहानी है, ठीक वैसे लिखी गई जैसे रेणु सत्तर साल पहले मैला आंचल लिखते हैं, वही सहजता है बस परिस्थिति और काल का अंतर है(यहां तुलना नहीं की जा रही)
यह साहित्य को नई ऊंचाई देगा, मुझे नहीं लगता कि मंझे हुए कलाकारों की एक्टिंग पर और लिखूं क्योंकि वहां बहुत लिखा जा चुका है.
जुग जुग जियो टीवीएफ!
Travel Talk : पहाड़ और वहां बुरांश का मौसम
(आनंद राज गीत और किस्से लिखने वाले नई उम्र के साहित्यकार हैं, उनकी यह समीक्षात्म्क टिप्प्णी उनकी वॉल से ली गई है.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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Panchayat Series : गांव के मुद्दे हैं, कॉमेडी है लेकिन सिनेमा की मैच्योरिटी भी