बहू को लेकर हमारे समाज में जितनी व्याख्याएं हैं, उनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं. हंसना है, पर ज़ोर से नहीं. बहुएं हैं आख़िर...

* हमारी बहू highly qualified है, इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है, लेकिन आज तक कभी अपने संस्कारों को नहीं भूली. इतनी आज्ञाकारी, सद्गृहस्थ और ट्रेडिशनल है कि गांव की लड़कियां भी शरमा जाएं.

* हमारी बहू अपने पति के साथ घूमे-फिरे बाहर जाए तो चाहे जो पहने, आज तक हमारे सामने उसके सिर से पल्ला नहीं लुढ़का.

* हमारी बहू के ऑफिस में कॉरपोरेट कल्चर है इसलिये वहां तो वेस्टर्न कपड़े पहनना ही पड़ता है, लेकिन मजाल है कि परिवार में कभी उसने उल्टे सीधे कपड़े पहने हो.

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* हमारी बहू को दस बजे ऑफिस पहुंचना होता है, लेकिन जाने से पहले सबका चाय नाश्ता टिफिन और दोपहर के खाने की पूरी तैयारी करके जाती है.

* हमारी बहू डॉक्टर है, लेकिन हमारे गांव तक में उसकी मिसाल दी जाती है. लोगबाग कहते है कि संस्कार, परंपरा निभाना कोई उससे सीखे.

* हमारी बहू रात के सिवा कभी अपना कमरा बंद नहीं करती. हम तो उसके रूम में कभी भी बेखटके घुस जाते हैं.

* हमारी बहू दिन में एक झपकी तक नहीं लेती. भले ही हम सबको दोपहर में सोने की आदत है, हमारे उठते ही हाथ में चाय का प्याला थमा देती है.

* हम तो भई बड़े मॉडर्न हैं..बहू बेटी में कोई फ़र्क नहीं समझते.

 

(श्रुति कुशवाहा पत्रकार और कवि हैं. सोशल मीडिया पर अपनी चुटीली टिप्पणियोंं के लिए सुख्यात हैं. ) 

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

 

 

Ghalib ki Haveli : गुलज़ार ने मुझे ग़ालिब का पता दिया

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some funny notes by Shruty Kushwaha on societal fixation with daughter in law
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यह है हमारे समाज का बहूमत!
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