यह एक दिलचस्प किताब है. इसलिए नहीं कि अमिताभ बच्चन के जीवन की कथा है बल्कि शायद इसलिए कि इसको पुष्पा भारती ने लिखा है. धर्मवीर भारती-पुष्पा भारती परिवार के साथ हरिवंश राय बच्चन परिवार का गहरा संबंध था और इसको अमिताभ बच्चन ने भी बहुत दूर तक निभाया. किताब की शुरुआत में पुष्पा जी ने लिखा है कि 1968 में मुंबई में समुद्र किनारे धर्मवीर भारती के घर के टैरेस पर बच्चन जी का काव्यपाठ हुआ था, जिसमें बच्चन जी ने धर्मवीर भारती की पसंद की अपनी कविताओं का पाठ किया था. पुष्पा जी ने लिखा है कि उस दिन अमिताभ पहली बार उनके घर आए थे. उसके बाद कई आत्मीय मुलाक़ातें हैं, बातें हैं, जिनको पुष्पा जी ने इस किताब में संजोया है.
उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ पर फ़िल्म बन रही थी
इस किताब से दो नई बातें पता चली. एक तो यह कि धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ नाम से फ़िल्म बन रही थी जिसकी शूटिंग इलाहाबाद में हुई थी. निर्देशक थे कैलाश कपूर, संगीत जयदेव का था. बहरहाल, फ़िल्म पूरी नहीं हुई लेकिन इलाहाबाद में शूटिंग के अनुभवों को अमिताभ बच्चन ने धर्मयुग में 15 अगस्त 1971 के अंक में लिखा था. धर्मयुग में ही 18 मार्च 1973 के अंक में उन्होंने मुंबई की होली पर एक टिप्पणी लिखी थी. लेख के साथ जो फ़ोटो है वह भी उसी साल की है जिस साल का वह लेख है. फ़ोटो में अमिताभ, जया के साथ रेखा भी बैठी हैं. अमिताभ बच्चन ने धर्मयुग में लिखा था यह जानकारी मुझे नहीं थी. सौम्य बंदोपाध्याय ने अमिताभ की जो जीवनी लिखी है उसमें अमिताभ ने इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया में लिखे अपने लेख का ज़िक्र तो किया है लेकिन धर्मयुग की टिप्पणियों का नहीं. इसी किताब से यह भी पता चला कि अमिताभ ने 1982 में ब्रीच कैंडी अस्पताल के बिस्तर पर पड़े पड़े अंग्रेज़ी में एक कविता लिखी थी, जिसका अनुवाद बच्चन जी ने किया था-
बाहर-भीतर
बाहर,
ऊपर मंडराते, डरपाते,
अँधियाला छाते से बादल.
नीचे
काली, कठोर, भद्दी चट्टानों पर
उच्छल, मटमैली जलधि तरंगों की क्रीड़ा
भीतर
सब उज्ज्वल, शुद्ध, साफ़
चादर सफ़ेद, कोमल तकिए,
ममतमायी सारी देखरेख
ओ मेरी एकाकी पीड़ा.
मैंने पहले ही लिखा था कि बहुत दिलचस्प किताब है. इसका प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है.
(प्रभात रंजन चर्चित लेखक और अनुवादक हैं. साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी हैं.)
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
कमलेश्वर हिंदी के सच्चे पेशेवर लेखक थे
मैं नहीं चाहती थी कि किसी को पता चले स्कूल की PEON मेरी बुआ हैं
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