अ‍सीमा भट्ट

Home is the place where, when you have to go there. They have to take you in.' -Robert Frost

मुझे मुम्बई में रहते हुए दस साल हो गए लेकिन अभी तक मेरा अपना घर नहीं हो पाया है. वजहें कई हैं. कभी पिता की बीमारी और उनका इलाज़, कभी छोटी बहनों की शादी और उनकी मदद करना.

मुम्बई में जो भी अभिनेता या अभिनेत्री या किसी भी फील्ड में काम करने आते हैं. उनकी पहली समस्या होती है घर की. घर ढूंढ़ना और किराए पर लेना एक लम्बी प्रकिया होती है. इस पर पहले भी एक लेख लिखा था.

कोविड और मकान सहित रेंट की समस्या

पिछले कुछ दिनों से लॉकडाउन की वजह से सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है. सरकार द्वारा इस घोषणा के बावजूद कि जब तक लॉकडाउन है कोई भी मकान मालिक किराएदार को किराए के लिए तंग नहीं करेंगे. उनकी भी अपनी समस्या थी कि उनका गुज़ारा भी किराए से ही होता था ख़ासकर मेरे मकान मालिक ने कहा कि 'उन्हें EMI देना पड़ता है इसलिए वो किराया माफ़ नहीं कर सकते.'

 उनकी भी मज़बूरी है, समझते हुए लगातार किराया देना ही पड़ा. कई बार स्थिति बहुत ही शर्मनाक और दर्दनाक दोनों हो जाती है कि जब कभी भी एक दो महीने किराया देने में देरी हो तो घर ख़ाली करने का नोटिस मिल जाता है.

यह सिर्फ़ मेरे साथ नहीं होता कमोबेश मुम्बई में रहने वाले हरेक किराएदार का है. पिछले दिनों मुझे दो लड़कियों ने बताया कि उन्हें मकानमालिकों द्वारा समान समेत घर से बाहर फेंक दिया गया है. मुझसे आसरा मांगा. मैं ख़ुद एक छोटे से कमरे में रहती हूं. एक-आध सप्ताह से अधिक किसी को अपने साथ नहीं रख पाती. 

 

मुम्बई में जगह-जगह से करियर की तलाश में आती हैं लड़कियां

बात यह है कि यह एक गम्भीर समस्या है. मुम्बई जैसे महानगर में हर राज्य से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लड़कियां अपना भाग्य आज़माने आती हैं. उसे देखते हुए कोई ऐसी सरकारी आवास की सुविधा होनी चाहिए, जहां उचित दर पर लड़कियों को सम्मान और सुरक्षा के साथ रहने की सुविधा हो. यहां एक हॉस्टल टाउन में या फिर YWCA है लेकिन वहां पर उतनी जगह नहीं है जहां हर लड़की को आसरा मिल सके. ऊपर से उनकी शर्तों में एक शर्त यह है कि रात दस बजे के बाद लड़्कियां हॉस्टल के अंदर नहीं आ सकतीं.

फिल्मों और टीवी में काम करने वालों को पता ही नहीं होता कि वे कब घर से निकलेंगे या वापस लौटेंगे. इस शहर में रहने की समस्या इतनी है कि कई बार लड़कियां मज़बूरी में किसी पुरुष के साथ घर शेयर करने पर बाध्य हो जाती हैं और वहां कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि महाराष्ट्र सरकार जो हर पक्ष पर इतनी अच्छी तरह से सोचते हैं, उनका ध्यान इस तरफ़ अब तक क्यों नहीं गया

asima bhatt

पटना का मेरा वर्किंग वीमेन हॉस्टल

मैं एक बात बताना चाहती हूं. मैं पटना (बिहार) में वर्किंग विमेंस हॉस्टल में रहती थी. वह वर्किंग विमेंस हॉस्टल कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित प्रसिद्ध डॉक्टर ए.के.सेन की पत्नी मिसेज सेन ने बानाया था. जिसमें पूरे लगभग पूरे बिहार से आयी हुई लड़कियां जो पटना में नौकरी आदि करतीं थीं, उन्हें वहां बहुत कम दर में रहने की सुविधा थी. मैं ख़ुद मात्र 75 रूपये देती थी.

जहां मुझे हर तरह से प्यार और सुरक्षा दोनों मिला. हमारी वार्डन एक बुजुर्ग महिला थीं, जिन्हें वहां की सभी लडकियों 'अम्मा जी' ही बुलाती थीं.

कहां गई वे लड़कियां

अपने इस पोस्ट के माध्यम से मैं महाराष्ट्र सरकार का ध्यान इस और दिलाना चाहती हूं कि वे विकास के नाम पर इतना काम कर रहे हैं, उन्हें इस मुद्दे पर गंभीरता से और शीघ्र समाधान लाने के विषय में सोचना चाहिए.

वरना आप पाठकों को बता दूं कि घर के किराए की मज़बूरी की वजह से लड़कियों को वेश्यावृति जैसे कुकर्म में भी उतरना पड़ा है.  

क्या आप जानते हैं कि लाखों लड़कियां जो अपनी आंखों में कुछ बनने का सपना लेकर मुम्बई आयीं, वो कहां गयीं? पता कीजिये शायद उनका कोई पुलिस रिकॉर्ड भी नहीं मिलेगा.  उनके मां-बाप ने भी रो-धोकर उन्हें मरा हुआ मान लिया .अब आपलोग ही तय करें कि इस पर क्या होना चाहिए?

मेरी गुज़ारिश है कि मुम्बई में इतनी ज़मीने हैं, जहां रातों रात मल्टी स्टोरीज़ बन जाती है. मॉल बन जाते हैं. वहां लड़कियों के लिए एक सुरक्षित आशियाना क्यों नहीं बन सकता?

(असीमा भट्ट अभिनेत्री हैं. मुम्बई में रहती हैं. उन्होंने इस पोस्ट में लड़कियों के रहने की समस्या पर बात की है.) 

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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मुम्बई में औरतों के लिए सुरक्षित जगह की चाह
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