दिनभर हंसता हंसाता आनंद, चुहलबाज़ी करता आनंद ,बाबू मोशाय के गुस्से पर भोलेपन से मुस्कुराता आनंद, अस्पताल को अपने लतीफों से गुलज़ार करता आनंद …
क्या यही आनंद का असली चेहरा था ?
हां बेशक़.. सब के सब ख़ालिस आनन्द हैं. सब रूप आनंद की आत्मा के हैं जिन्हें वह छुपाता नहीं ,जिन्हें वह तालों में बंद नहीं रखता. वह सारी दुनिया का आनन्द है और एकदम सच्चा आनन्द है दिखावे से परे.
लेकिन एक रूप ऐसा भी है आनंद का जो सिर्फ उसके खुद के लिए है ,उसके सबसे निजी क्षणों में खुलता है कुछ पलों मात्र को और फिर दिल के सबसे भीतरी तहखाने में जाकर छुप जाता है.
कौन था आनंद?
उन कुछ पलों में देखा है आनंद को ? डूबती सांझ की उदासी में 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए' गाता हुआ उस सांझ की ही तरह उदास आनंद.
ओह... कितना तरल और पारदर्शी चेहरा. सूनी आंखें, चेहरे पर एक करुण पीड़ा और पानी की एक ठंडी बूंद तलाशती कोई पुरानी प्यास. आनंद अपने दुखों के साथ अकेला है ,अपनी पीड़ाओं को कोमलता से,प्यार से सहला रहा है. कोई ख़लल न डाले उसके एकांत में.
उसके हाथों में उर्दू में लिखी नज़्मों की किताब है . कोई ऐसी वैसी साधारण किताब नहीं,बहुत ख़ास किताब. किताब जिसके भीतर एक पन्ने पर एक सूखा हुआ फूल रखा हुआ है, जिसे वह खोलता है,धीरे से फूल को छूता है,उसे उठाता है और वापस रख देता है. ठीक इसी क्षण उसकी आंखों में पानी तैर आया है .एक स्मृति पलकों पर आ ठिठकी है.यह आंसू अनमोल है कि यह एक मुस्कुराते हृदय का सबसे नायाब हीरा है . मुकेश की आर्द्र आवाज़ की छाया में अपने भीतर भटकता,अपनी परतों को खोलता आनन्द. यह इस गीत का सबसे खूबसूरत दृश्य है.
उस पल में देखना आनंद को . मानो ये वो आनन्द नहीं जो हंसते हंसते बेदम हुआ जाता है. यह वो आनंद है जो किसी के समक्ष नहीं खुलता . अपने तमाम दुख एक मखमली डिबिया में सहेजकर रखता है. जिसके सामने ये डिबिया खुलेगी वो कोई एक ही होगा.ऐसा कोई जिसके सामने आनन्द फूट-फूट कर रो सकेगा. जिसके सामने आनंद अपने हृदय के सारे गवाक्ष खोल देगा .और यह लम्हे उस भाग्यशाली व्यक्ति के लिए सबसे अनमोल लम्हे होंगे जिसे आनन्द ने अपने हृदय के सबसे भीतरी निजी कमरे में आमंत्रित किया है.
राजेश खन्ना से बेहतर आनंद कोई और होता?
कभी भी किसी आनंद से मिलना हो तो उन्हीं पलों में मिलना बशर्ते वह तुम्हें इसकी इजाजत दे. पात्रता अर्जित करनी होती है इस आनंद से मिलने के लिए. हंसता गाता आनन्द तो अजनबियों तक के लिए सहज उपलब्ध है.
खेलते कूदते,हंसते हंसाते आनन्द को देखकर होंठों पर एक मुस्कान खिल आती है. लेकिन नीले कुर्ते औऱ सफेद पायजामे में उदास ,गम्भीर " दिल जाने कैसे मेरे भेद ये गहरे,खो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे " गाता हुआ आनंद मेरा फेवरिट है.इस आनन्द पर प्यार आता है .इस आनन्द को गोद मे लिटाकर सर सहलाते हुए मीठी नींद सुलाने का मन करता है.
एक अभिनेता के जीवन में वह भूमिका अविस्मरणीय होती है जब वह औऱ चरित्र आपस में घुलकर एक हो जाते हैं. अभिनेता नहीं सिर्फ चरित्र बचता है. राजेश खन्ना से बेहतर आनंद कोई और होता या नहीं, पता नहीं लेकिन राजेश खन्ना ठीक वही आनन्द हैं जो ऋषिकेश मुखर्जी ने रचा था. आनंद माने राजेश खन्ना ,राजेश खन्ना माने आनंद.
(पल्लवी त्रिवेदी की वॉल से)
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