- प्रभात रंजन
आज कमलेश्वर जी की जयंती है. वे सच्चे अर्थ में हिंदी के पेशेवर लेखक थे. आज़ादी के बाद के हिंदी साहित्य का कोई इतिहास उनकी कहानियों, उनके उपन्यासों की चर्चा के बिना पूरा नहीं हो सकता है. साहित्यिक पत्रकारिता में ‘सारिका’ जैसी पत्रिका का संपादन किया. उत्तर भारत के गांवों-क़स्बों तक हिंदी साहित्य को पहुंचाने में ‘सारिका’ का क्या योगदान था इसके ऊपर शोध होना चाहिए. उन्होंने तक़रीबन सौ फ़िल्में लिखीं.
बीस साल में बीस संस्करण 'कितने पाकिस्तान' उपन्यास के
टीवी के लिए ‘चन्द्रकांता’ जैसा धारावाहिक लिखा. ‘कितने पाकिस्तान’ उनका अंतिम प्रकाशित उपन्यास जो निस्संदेह इक्कीसवीं सदी में हिंदी का सबसे अधिक पढ़ा गया उपन्यास है. बीस साल में इसके बीस संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. वे अपने समय से आगे देखते थे.
मुझे याद है कि 1997 में उनकी कहानी प्रकाशित हुई थी ‘तुम्हारा शरीर मुझे पाप के लिए पुकारता है’. तब मुझे वह कहानी समझ में नहीं आई थी. हालांकि कमलेश्वर जी बार-बार कहते थे कि एक अजीब कहानी लिख गया हूं. पढ़कर देखना तुमको उत्तर आधुनिक लगेगी. ख़ैर, उस कहानी के प्रकाशन के बहुत बाद जब इम्तियाज़ अली की फ़िल्म आई ‘लव आजकल’ और ब्रेक अप पार्टी की चर्चा होने लगी तो मुझे कमलेश्वर की कहानी ‘तुम्हारा शरीर मुझे पाप के लिए पुकारता है’ की याद आई. उसकी थीम ब्रेक अप पार्टी ही है.
जीवन के अंतिम सालों में उन्होंने अनुवाद पर ध्यान दिया और पाउलो कोएलो के बेजोड़ उपन्यास ‘अलकेमिस्ट’ का अनुवाद किया.
हिंदी के इस सच्चे पेशेवर को सादर प्रणाम.
(प्रभात रंजन चर्चित लेखक और अनुवादक हैं. साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी हैं.)
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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