डीएनए हिंदी: WhatsApp की प्राइवेसी पॉलिसी का मुद्दा पिछले साल भर से ज्यादा समय से विवादों में है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की है और कहा है कि WhatsApp की प्राइवेसी पॉलिसी वाली नीतियों ने यूजर्स पर स्वीकृति देने का दबाव बनाया है.
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने वॉट्सऐप की नई प्राइवेसी पॉलिसी में खामियां निकालते हुए कहा कि यह यूजर्स को “स्वीकार करो या जाओ” स्थिति में डाल देता है. इसके साथ ही ग्राहक के लिए उपलब्ध विकल्प केवल “भ्रम” हैं. वहीं यूजर्स विकल्प की कमी के कारण समझौता करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. वॉट्सऐप की 2021 यूजर पॉलिसी के लिए कोर्ट का यह बड़ा झटका है.
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इस मामले में एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐप नई पॉलिसी पर आई रिपोर्टों के कारण संदेह के घेरे में आ गई है. कहा गया है कि यह अपने यूजर्स का डेटा अपनी पैरेंट कंपनी फेसबुक के साथ साझा करेगा. वहीं इस पॉलिसी को नहीं स्वीकार करने वाले यूजर्स के अकाउंट को वॉट्सऐप डिलीट नहीं करेगा लेकिन यूजर्स कुछ हफ्तों के बाद इनकमिंग कॉल या मैसेज प्राप्त नहीं कर पाएंगे. हालांकि मैसेज और कॉल का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन बना रहेगा लेकिन ये पूरी पॉलिसी ही बाध्यता वाली ही है.
इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश एससी शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने 49 पन्नों में अपना फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट ने कहा कि यह मामला में प्रथम दृष्टया अपने यूजर्स पर अनुचित नियम और शर्तों को लागू करने के बराबर है. इसके साथ ही कोर्ट की बेंच ने कहा कि 22 अप्रैल 2021 को सुनाया गया एकल बेंच का फैसला उचित था और वह ही लागू रहेगा.
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इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि “स्वीकार करो या जाओ” विकल्प ने सीसीआई को निष्कर्ष पर पहुंचाया था कि 2016 की नीति प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन नहीं करती थी. 2021 की नीति प्रमुख मुद्दों में से एक वॉट्सऐप की मूल कंपनी फेसबुक के साथ अपने यूजर्स के डेटा को साझा करने की प्रवृत्ति है जो कि यूजर्स के लिए घातक है.
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WhatsApp की प्राइवेसी पॉलिसी पर उठे सवाल, HC ने कहा- यूजर्स को मजबूर करती हैं नीतियां