अब दिल्ली लौटने का वक्त आया है तो लग रहा है, दिल्ली में घर होना कितना ज़रूरी है. पीजी में रहने का सोचकर ही मन कांप रहा है. एक कमरे में दो लोग रखे नहीं ठूंसे जाते हैं. फ्लैट के लिए चार लोग चहिए. तीन मान भी जाएं तो चौथा मजाल है कि हां बोल दे. कोई रहबर है नहीं जो मार्गदर्शन कर दे.  

ज़िंदगी यही है शायद. कोरोना आया तो कमरा खाली करने के लिए कितने पापड़ बेले थे, अब वापस लेने के लिए कितना सोचना पड़ेगा. लोगों को लगता होगा, दिल्ली में रहता है लड़का... ये वो.. ऐश! और एक मेरा दिल है जो सच जानता है. कुछ दिन पटना में रहा. वहां कुछ नहीं तो उम्मीद थी कि कहीं नहीं तो घर लौट जायेंगे. दिल्ली से तो घर लौटने में भी एक त्योहार जितना वक्त लग जाता है.

ambuj anand

एक बार मैंने किसी मीडिया कंपनी के कमेंट बॉक्स में लिखा था, नौकरी चहिए, मैं जुड़कर काम करना चाहता हूं. सिर्फ इसलिए कि अपना खर्चा निकाल सकूं. उस कंपनी का रिप्लाई था, आपको तरीका पता है? एफबी पे नौकरी नहीं मिलती. एक प्रॉसेस है, पता कीजिए. और फिर पेज पे गया तो उसके दूसरे पोस्ट पर था, आप हमारे पेज को लाइक कर लीजिए. सोचकर देखिए. तरीका सिखाने वाले का तरीका.

आसान दिखने वाली जिंदगी सबसे मुश्किल होती है. ऐसे लोगों की आवाज क्रान्ति कर सकती है पर खुद का गला घोंट देती है. रहने और खाने के लिए सोचना पड़ता है. ये पलायन का दुःख मजदूरों तक ही नहीं उससे आगे तक फैली हुई है. कई बार चॉइस और संघर्ष के ऊपर गले में अटक जाने वाली बातें हैं, जो कहीं लिखकर दिल को हल्का कर लिया जाता है. मैं भी वही कर रहा हूं. करना ही होगा क्योंकि विकल्पों के बीच से एक उत्तर ढूंढना ही होगा.

(अम्बुज बिहार से वास्ता रखते हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र हैं.)

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

New Book: पुष्पा भारती की अमिताभ बच्चन पर किताब

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life that appears easy is the most difficult
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आसान दिखने वाली जिंदगी सबसे मुश्किल होती है.
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