मोहम्मद रफ़ी: एक रूहानी आवाज़

रफ़ी साहब ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए गीत किसी अपने रिश्तेदार से उर्दू में लिखवा लेते थे और उसे देख कर गाते थे.